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________________ जाता है। इसी का खुलासा हम गोम्मटसार की वे मार्गण. की एक लियों से यहां कर देते है पुरिसिरिछसंढवेदोदयेण पुरिलिच्छि सहयोभावे। णामोदयेण दवे पाएण समाविसमा ॥ (गो० जी० गाथा २७१ पृ०५६१ टीका) पथ-पुरुष की नपुंसक उदय से पुरुष की नपुसकभाव होता है। और नामका के उमय से पुरुष की नपुंसक ये द्रव्य वेद त है। प्रायः य भाववेद भोर म्यवर समान होते हैं भयान जो द्रव्यदलाता है वही भार हाता है पोर कबीर पर विषम भी होते हैं। द्रध्यबंद दुसरा भोर भाववंद दूसरा ऐसा भी होता है। इस उपर की गाथा में ही द्रव्यवेद का पE उन्लेखमा गया है। भावपक्षी विज्ञान का यह कहना कि सर्वत्र भाववा काही बनी इस मूल मन्य से सबंषा बाधित हो जाता है । इसी गाया की संस्कृत टीका इस प्रकार है। पुण्सीडास्यत्रिवेदानां पारित्रमोहभेदनोपावावोन एवेन भावे वित्परिणाम यथासंस्य पुरुषा को पटरच जीवो भवति । निर्माणनामकमोदययुच्चंगोपांगनामकक्रोिपोदवेन द्रव्ये पुलद्रव्ययविशेषे पुनः भोपडप भवति । इन पक्षियों में भावयेत बरेद दोनों बसारिया गाह इस रूप में किया गया। पुरावेर और
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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