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________________ प्रमाद रहता है वहां भावसी वेद के उमय में मुनियों के भावों में कुछ मलिनता मा जाती है. मतः माहारकद्धि नहीं पैदा होती पान जब द्रव्य मनुष्य के अपर्याप्त अवस्था में चौथा गुणस्थान होता है इस अवस्था में भावली वेद का उदय उसमें क्या बाबा दे सकता है? जबकि भावस्रो वेद के उदय में वां गुणाधाम तक हो जाता है। यदि भावत्री वेदी द्रव्य मनुष्य की अपर्याप्त प्रवाया में सम्यग्दृष्टि के उत्पन्न होने का कही पर निषेध हो तो कृपा कर बताइये, ऊपर जा प्रमाण मापने दिया। उससे तो संयम और भाहारकऋद्धि का ही निबंध सिद्ध होता है। भागबानी जी ने मनुपिणी भी भावनी होती है इसके सित करने केजिये धवल का यह प्रमाण दिया है भणुमिणीमु पसञ्जदसम्माट्ठीणं उपवादो त्यि पमत्तेतेमा. हार माग्यादा स्थि। धवन की इन पंक्तियो का अर्थ उन्हों ने यह किया है किभावमानुषो के प्रमत्त गुणस्थान में तेजः समुद्घात भौर माहारक समुद्रात का निषेध किया गया है उन्हीं में पसंयत सम्यग्दृष्टियों के उपपाद समुद्घात का निषेध किया गगा है यदि मोनी जी के पर्थानुसार यही माना जाय कि द्रव्य पुरुष भावत्री की अपर्याप्त अवस्था में सम्यग्दृष्टि पैदा नहीं होता है, तो फलतः यह अर्थ भी सिद्ध होगा कि द्रव्यत्री भावपुरुष के तो अपर्याप्त अवस्था में सम्यग्दृष्टि पैदा होता है। अब सर्वत्र भाववत की मुख्यवा से ही कपन है तो व्यत्री को भपयांत अवस्था में पटखएडागम से
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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