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________________ ११० हुये सोनी जी के लेख का उत्तर ऊपर दिया जा चुका है। अब उनके उक्त पत्र के १६ सितम्बर और १ अक्टूबर के लेखों का संक्षिप्त उत्तर यहां दिया जाता है जो कि हमको ध्यान दिन्नाकर उन्होंने लिखे हैं। ___ सोनी जी ने लिखा है कि- "गत्यंतर का या मनुष्यगति का ही कोई भी सम्यग्दृष्टि जीव मरकर भारती द्रव्य मनुष्यो में उत्पन होवा हो तभी उसके पर्याप्त अवस्था में चौथा पसंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान हो सकता है अन्यथा नहीं।" इसके लिये वे नीचे प्रमाण देते हैं-जेसि भावों इत्थि वेदोदबं पुण पुरिस वेदो तेवि जीवा संजमं परिवति दवित्यिवेदा सजमण पडियजति सचेलत्तादो । भावित्थि वेदाणं दवेण पुदाणं पि संनदाणं णाहाररिद्धि समुपदि दवभावेण पुरिस. वेदाणमेव समुपजदि । धवल । इन पंक्तियों का अर्थ सोनी जी ने किया है। यहां हम तो यह राव उनसे पूछते हैं कि उपर तो पाप अपर्याप्त अवस्था में भाव बी और द्रव्य पुरुष में सभ्यग्दृष्टि के उत्पन्न होने का निषेष करते है और उसके प्रमाण में जो धवल को पंकि मापने दी है उससे भाहारकश्चद्धि का निषेप होता है, न कि भावनी द्रव्यपुरुष में सम्पष्टिके मरकर पैदा होनेका । बात दूसरी और प्रमाण दुसरा यह वो मनुषित एवं प्राय है। भाव जीवेद के सदय में द्रव्य पुरुष संयमो अवस्था में छठे गुपस्थान में माहारकद्धि नहीं होती है यह तो इसलिये ठीक है, कि बठे गुणस्थान में स्थूल
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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