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________________ विशेष-मनुष्यों के पर्याप्त मनुष्य, सामान्य मनुष्य, मानुषी और अपर्याप्त मनुष्य, इन चार भदों में अन्त के अपर्याप्त मनुष्यों को छोड़ कर शेष तीन भदों में विशेष वक्तव्य इस लिये है कि वहां पर्याप्ति का प्रतिपक्षी निवृत्यपर्याप्त है। परन्तु मनुष्य के ध्यपर्याप्तक भद में उसका कोई प्रतिपक्षी नहीं है। अत: उस सम्बन्ध में कोई विशेष वक्तव्य भी नहीं है। इस नब्ब्यपयाप्तक के कथन से भी कंवल द्रव्य वेद का ही कथन सिद्ध होता है, क्योंकि उसमें भानवेद की अपेक्षा स कथन बनता ही नहीं है। बस ३ वें सूत्र में पड़े हुये पदों का और धवनाकार का पूरा अभिप्राय हमने यहां लिख दिया है। अर्थ में धवला की पंक्तियों का ठीक शब्दार्थ किया है और जहां विशेष शब्द है वहां हमने उसी धवला के शब्दार्थ को विशेषरूप स सष्ट किया है। कोई शब्द या वाक्य हमने ऐसा नहीं लिखा है जा सूत्र और धवला के पाक्यों से विरुद्ध हो। प्रन्य और उसके अभिप्राय के विरुद्ध एक अक्षर लिखने को भी हम असभ्य अपराध एवं शाल का प्रवर्णवादात्मक सब से बदकर पाप समझते हैं। इस विवेचन से पाठक एवं भावपक्षी विद्वान शाख-मर्मस्पर्शी बुद्धि सगवेषणा पूर्वक विचार करें कि सूत्र ६३वें में "संज" पद जोड़ने की किसी प्रकार भी गुजायश हो सकती है क्या ? उत्तर में पूर्वापर कमति निरूपण, सूत्र एवं धवना के पदों पर विचार करनेसे वे
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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