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________________ यहो नि। सिद्ध फलिनार्थ निकालेंगे कि वे सत्र में किसी प्रकार की संयत पद के जोड़ने की सम्भावना नहीं हैं। क्योंकि वह सूत्र पनि यत्रो के हो गुणस्थानों का प्रतिपादक है। इन सूत्रों को भाववेद विधायक मानने में -अनेक मनिवार्य दोषभावपक्षी विद्वान इन सूत्रों को भाववेद विधायक ही मानते हैं उनके वैसा मानने में नीचे लिव अनेक ऐसे दीप उत्पन्न होते हैं, जो दूर नहीं किये जा सकते हैं, उन्हीं का दिग्दर्शन हम यहां कराते हैं। षदम्बएडागम के धवल सिद्धांत का वां सूत्र अर्याम मनुष्य के लिये कहा गया है, उसके द्वारा प्रयाप्त मनुष्य के पहना दुसरा और चौथा ये तोन गुणस्थान बताये गये हैं, परन्तु सभी भावपनो विद्वान उप मूत्र का भो भावद वाला ही बनाते हैं, अत: उनके कथनानुसार भावमनुष्य का ही विधायक ८६वां सूत्र ठहरता है। ऐसी अवस्था में उस व्यत्री शरीर पर भाव पुरुष वेद का विधायक भी माना जा सकता है। ऐसा मानने से द्रव्य जी की अपर्याप्त अवस्था में भी सम्यग्दर्शन सहित उत्पत्ति सिद्ध होती है। यदि यह कहा जाय कि ८ सूत्र भाववेद से भी पुरुष. बंद का विधायक है और न्यवेद भी इस सत्र में द्रव्य पुरुष हो मानना चाहिये, जैसा कि श्री फूलचन्द जी शास्त्री अपने लेख में लिखते हैं कि- "सो मालूम नहीं पड़ता कि पण्डित जी (हम)
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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