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________________ बीरमरकर द्रव्य श्री में नहीं जाता है इसलिये ऊपर की शा और समाधान से भी दव्यस्त्री का ही ग्रहण होता है। कुतोवसीयते । अस्मादेवाऽऽर्षान। अर्थ-का-यह बात कहां से जानी जाती है ? उत्तर-सीमा से जानी जाती है। विशेष-इस ६३वें सत्र में fणयमा पसियानो' यह स्पष्ट वाक्य है, इसी वाक्य सं यह सिद्ध होता है कि सम्यक्दर्शन की प्राप्ति द्रव्यत्री की पर्याप्त अवस्था में ही नियम से होती है। यदि सम्यग्दर्शन को साथ लेकर जीव द्रव्यत्री में पैदा हो जाताहो तो फिर इस सूत्र में जो चौथा गुण स्थान नियमले पयाप्त अवस्था में ही होता।' ऐसा प्राचार्य नहीं कहते, इसलिये इस सूत्र रूप भार्ष स हो सिद्ध होता है कि सम्यग्दृष्टि मरकर द्रव्य श्री में पैदा नहीं होता है। भस्मादेव पार्षात व्यत्रीणां निवृत्तः सिद्धयन इतिचेत्र सबासस्त्वान. अप्रत्याख्यानगुणस्थितानां संयमानुपपत्तेः। अर्थ-श-सीमा से द्रव्यक्षियों के मोह भी सिद्ध होगी उत्तर-यह शहा भी नही हो सकती, क्योंकि बस सहित होनेसे असंयम (दशसयम) गुण,थान में ठहरी हुई उन नियों के संयम दा नही होता है। विशेष-शशकार का यह कहना है कि सम्यदर्शन मोक्ष का
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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