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________________ मनुष्याअर्याप्तवपर्याप्तिप्रतिपक्षामावतः सुगमस्थान सत्र बत्तव्य मति "। पृष्ठ १६६-१६७ पबला) ___ उपर वे सूत्र की समस्त धवमा का उद्धरण दिया गया है यहां पर हम नीचे प्रत्येक पक्ति का शब्दशः अर्थ लिखते हैं और उस अर्थ के नीचे (विशेष) शन द्वारा उसका खुलासा अपनी भोर से करते है हुरडावसरियां सीपु सम्यग्दृष्टयः किमोत्पद्यन्ते इतिचेतनोत्पद्यन्ते। अर्थ-हुण्डावसर्पिणी में खियों में सम्यग्दष्टि जीव क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? इस शंका के उत्तर में प्राचार्य कहते हैं किनहीं उत्पन्न होते हैं। विशेष-यहां पर कोई दिगम्बर मतानुयायी शङ्का करता कि जिस प्रकार हुएडावसर्पिणी ग्रन में तीर्थकर मादिनाथ भगवान के पुत्रियां पैदा हुई हैं, पटखएडविजयी भरत चक्रवर्ती की भी विजय (हार) हुई है, उसी प्रकार इस हुरडावसर्पिणी कान में द्रबिपों में भी सम्यग्दष्टि जीव पैदा हो सकते हैं इसमें स्या बाधा ? उत्तर में भाचार्य कहते हैं कि यह शहा ठीक नहीं है क्योंकि इस हुरडावसर्पिणी काल में भी द्रव्यस्त्रियों में सम्यगदृष्टि जीव पैदा नहीं हो सकते हैं। यहां पर इतना समझ लेना चाहिये कि धवनाकार ने मानुषी के स्थान में स्त्रीषु' पद दिया। उससे द्रव्यची काही ग्रहण होता है। दूसरे-सभ्यस्व सहित
SR No.010545
Book TitleSiddhanta Sutra Samanvaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMakkhanlal Shastri, Ramprasad Shastri
PublisherVanshilal Gangaram
Publication Year
Total Pages217
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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