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________________ १९०] श्री सिद्धचक्र विधान निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुअनेकार्थाय नमः अयं ॥४८६ ॥ लोभादिक मेटे बिन न सौचता होई, है वृथा तीर्थ स्नान करो भी कोई। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ___ ॐ ह्रीं साधुशौचाय नमः अर्घ्यं ॥४८७ ॥ है मिथ्या मोह प्रबल मल इनका खोना, सो शुद्ध सौच गुम यही न तनका धोना। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुशुचित्वगुणाय नमः अर्घ्यं ॥४८८॥ इक देश कर्ममल नाश पवित्र कहायो, तुम सर्व कर्ममल नाशि परम पद पायो। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुपवित्राय नमः अर्घ्य ४८९ ॥ तुम रहो बन्धसों दूरि एकान्त सुखाई, ज्यों नभ अलिप्त सब द्रव्य रहो तिस माहीं। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, .. मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुविमुक्ताय नमः अर्घ्यं ॥४९०॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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