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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१९१ सब द्रव्य भाव नोकर्म बन्ध छुटकाया, तुम शुद्ध निरञ्जन निज सरूप थिर पाया। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुबन्धमुक्ताय नमः अयं ॥४९१॥ अडिल्ल छन्द भावाश्रव बिन अतिशयसहित अबन्ध हो, मेघपटल बिन ज्यौं रविकिरण अबन्ध हो। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, . .. नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं। ___ॐ ह्रीं साधुबन्धप्रतिबन्धकाय नमः अर्घ्यं ॥४९२ ॥ तुम स्वरूप में लीन परम सम्वर करें, . यह कारण अनिवार कर्म आवन हरैं। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, _ नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं। . . ॐ ह्रीं साधुसम्वरकारणाय नमः अयं ॥४९३॥ पुद्गलीक परिणाम आठ विधि कर्म हैं, तिनकी करत निर्जरा शुद्ध सु परम हैं। मोक्षमार्ग वा मोक्षश्रेय सब साधु हैं, नमत निरन्तर हमहूँ कर्म रिपु को दहैं। ___ॐ ह्रीं साधुनिर्जराद्रव्याय नमः अध्यं ॥४९४॥ परम. शुद्ध. उपयोग रूप वरते जहाँ, छिन में अनन्तानन्त कर्म खिर है तहाँ।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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