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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१८९ सापेक्ष एकही कहै सु नय विस्तारा, तुम भाव प्रगट कर कहै सुनिश्चय कारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुपरमस्याद्वादाय नमः अयं ॥४८२॥ है ज्ञान निमित यह वचन जाल परमाणा, . वाचक वाच्य संयोग ब्रह्म कहलाना। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुशुद्धब्रह्मणे नमः अध्यं ॥४८३॥ षट् द्रव्य निरूपण करै सोई आगम हो, . तिसके तुम मूल निधान सु परमागम हो। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, __.मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं परमागमाय नमः अर्घ्यं ॥४८४॥ तीर्थेशं कहै सर्वज्ञ दिव्य धुनि माहीं, - तुम गुण अपार इम कहो जिनागम ताहीं। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुजिनागमाय नमः अयं ॥४८५॥ तुम नाम प्रसिद्ध अनेक अर्थ का बाँची, ताके प्रबोधसों हो प्रतीत मन साँची।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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