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________________ १८८] श्री सिद्धचक्र विधान निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वाय नमः अर्घ्यं ॥ ४७७ ॥ यद्यपि सामान्य सरूप सु पूरण ज्ञानी, तद्यपि निज आश्रय भाव भिन्न परनामी । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वगुणाय नमः अर्घ्यं ॥४७८ ॥ है साधारण एकत्व द्रव्य तुम माहीं, तुम सम संसार मँझार और कोऊ नाहीं । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वद्रव्याय नमः अर्घ्यं ॥ ४७९ ॥ यद्यपि सबही हो असंख्यात परदेशी, तद्यपि निज में निजरूप स्वद्रव्य सुदेशी । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुएकत्वस्वरूपाय नमः अर्घ्यं ॥ ४८० ॥ सामान्य रूप सब ब्रह्म कहावै ज्ञानी, तिनमें तुम वृषभ सु परम ब्रह्म परणामी । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुपरमब्रह्मणे नमः अर्घ्यं ॥ ४८१ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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