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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१८७ सामान्य रूप सब साधु मुक्ति मग साथै, हम पावै निज पद नेमरूप आराथें। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुसर्वशरणाय नमः अयं ॥४७३ ॥ त्रस नाड़ी ही मैं तत्त्वज्ञान सरधानी, ताकर साथै निश्चय पावै शिवरानी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ . ॐ ह्रीं साधुलोकशरणाय नमः अयं ॥४७४॥ .. तिहुँलोक करन हित वरते नित उपदेशा, हम शरम गही मेटो भववास कलेशा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, . मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ . ॐ ह्रीं साधुत्रिलोकशरणाय नमः अयं ॥४७५ ॥ संसार विषम दुःखकार असार अपारा, तिस छेदक वेदक सुखदायक हितकारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ___ॐ ह्रीं साधुसंसारछेदकाय नमः अर्घ्यं ॥४७६ ॥ यद्यपि इक क्षेत्र अवगाह अभिन्न विराजे, . तद्यपि निज सत्ता माहिं भिन्नता साजै।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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