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________________ १८६] श्री सिद्धचक्र विधान निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुज्योतिः प्रदीपाय नमः अर्घ्यं ॥४६८॥ सामान्यरूप अवलोकन युगपत सारा, तुम दर्शन ज्योति प्रदीप हरै अँधियारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, .. मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुदर्शनज्योति:प्रदीपाय नमः अर्घ्यं ॥४६९॥ साकार रूप सु विशेष ज्ञान द्युति माहीं, युगपत कर प्रतिबिम्बित वस्तु प्रगटाई। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराज, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुज्ञानज्योति:प्रदीपाय नमः अयं ॥४७०॥ जे अर्थ जन्य कहैं ज्ञान वो झूठे वादी, है स्वपर प्रकाशक आतम ज्योति अनादी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुआत्मज्योतिषे नमः अर्घ्यं ॥४७१ ॥ जे तारण तरण जिहाजा थित भवसागर, हम शरण गहैं पावै शिववास उजागर। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुशरणाय नमः अयं ॥४७२ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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