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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१८१ तुम अनुभवकरि शुद्धोपयोगमन धारा, - यह ज्ञान शरण पायो निश्चय अविकारा। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै। ॐ ह्रीं साधुज्ञानशरणाय नमः अध्यं ॥४४६ ॥ निज आत्म रूप में दृढ़ सरधा तुम पाई, . थिर रूप सदा निवसों शिववास कराई। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुआत्मशरणाय नमः अयं ॥४४७ ॥ तुम निराकार निरभेद अछेद अनूपा, 'तुम निरावरण निरद्वन्द्व स्वदर्श स्वरूपा। निज़रूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, ___मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै।॥ ... ॐ ह्रीं साधुदर्शनस्वरूपाय नमः अयं ॥४४८ ॥ तुम परम पूज्य परमेश परमपद पाया, - हम शरण गही पूर्णं नित मन-वच-काया। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, __ मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै॥ ॐ ह्रीं साधुपरमात्मशरणाय नमः अयं ।।४४९॥ तुम मन इन्द्री व्यापार जीत सु अभीता, - हम शरण गही मनु आज कर्म रिपु जीता।
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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