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________________ १८०1 श्री सिद्धचक्र विधान राग विरोध जयो शिवगामी, आत्म अनातम अन्तरजामी। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमजिनाय नमः अयं ॥४३९॥ भेद बिना गुण भेद धरो हो, सांख्य कुवादिक पक्ष हरो हो। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ___ ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमगुणसम्पन्नाय नमः अयं ॥४४० ॥ साधत आतम पौरुष पाई, उत्तम पुरुष कहो जग ताई। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै। ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमपुरुषाय नमः अर्घ्यं ॥४४१॥ . साधु समान न दीनदयाला, शरम गहै सुख होत विशाला। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ . ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमशरणाय नमः अर्घ्यं ॥४४२॥ जे जग साधू शरण गही है, ते शिव आनन्द लब्धि लही है। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुलोकोत्तमगुणशरणाय नमः अयं ॥४४३॥ साधुन के गुण द्रव्य चितारे; होत महासुख शरण उभारे। साधु भये शिव साधन हारे, सो तुम साधु हरो अघ म्हारै॥ ॐ ह्रीं साधुगुणद्रव्यशरणाय नमः अर्घ्यं ॥४४४ ॥ लावनी छन्द तुम चितवत वा अवलोकत वा सरधानी, इम शरण गहै पावै निश्चय शिवरानी। निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै। - ॐ ह्रीं साधुदर्शनशरणाय नमः अर्घ्यं ।।४४५ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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