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________________ १८२] श्री सिद्धचक्र विधान निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुनिजात्मशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ४५० ॥ भववास दुःखी जे शरम गहैं तुम मन में, तिनको अवलम्ब उभारो भयहर छिनमें । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुवीर्यशरणाय नमः अर्घ्यं ॥४५१ ॥ दृगबोध अनन्तानन्त धरो निरखेदा, तुम बल अपार शरणागति विघन विछेदा । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुवीर्यात्मशरणाय नमः अर्घ्यं ॥ ४५२ ॥ निज ज्ञानानन्दी महा लक्ष्मी सोहै, सुर असुरन में नित परम मुनी मन मोहै । निजरूप मगन मन ध्यान धरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुलक्ष्मीअलंकृताय नमः अर्घ्यं ॥ ४५३ ॥ भववास महादुःखरास ताहि विनशाया, अति क्षीन लीन स्वाधीन महासुख पाया । निजरूप मगन मन ध्यान धेरै मुनिराजै, मैं नमूं साधुसम सिद्ध अकम्प बिराजै ॥ ॐ ह्रीं साधुलक्ष्मीप्रणीताय नमः अर्घ्यं ॥ ४५४ ॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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