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________________ १५२] श्री सिद्धचक्र विधान बाह्य छत्तीस अन्तर अभेदात्मा, आप थिर रूप है सूरि परमात्मा। सूरि सिद्धान्त के पारगामी भये, मैं नमूं जोरकर. मोक्षधामी भये ॥ ___ ॐ ह्रीं सूरिगुणशरणाय नमः अध्यं ॥२२८ ॥ ज्ञान उपयोग में स्वस्थिता शुद्धता, पूर्ण चारित्रता पूर्ण ही बुद्धता। सूरि सिद्धान्त के पारगामी भये, मैं नमूं जोरकर मोक्षधामी भये॥ - ॐ ह्रीं सूरिधर्मगुणशरणाय नमः अध्यं ॥२२९॥ शरण दुःख हरण पर आप ही शर्ण हैं, . आपने कार्य में आप ही कर्ण हैं। सूरि सिद्धान्त के पारगामी भये, . मैं नमूं जोरकर मोक्षधामी भये ॥ . ॐ ह्रीं सूरिशरणाय नमः अयं ॥२३०॥ दोहा - ज्यों कंचन बिन कालिमा उज्जल रूप सुहाय, त्योंही कर्म-कलङ्क बिन निज स्वरूप दरशाय। ॐ हीं सूरिस्वरूपशरणाय नमः अध्यं ॥२३१॥ भेदाभेद सुनय थकी एकहि धर्म विचार, . पायो सूरि सुबोध करि भवदधि करि उद्धार। ॐ हीं सूरिधर्मस्वरूपशरणाय नमः अयं ॥२३२॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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