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________________ श्री सिद्धचक्र विधान [१५३ अन्य समस्त विकल्प तजि केवल निजपद लीन, . पूरण ज्ञान स्वरूप यह पायो सूरी सुधीन। ॐ ह्रीं सूरिज्ञानस्वरूपाय नमः अयं ॥२३३॥ सुखाभास इन्द्रीजनित त्यागी सूरि महंत, पूरण सुख स्वाधीन निज साध्य भये सुखवंत। ____ ॐ ह्रीं सूरिसुखस्वरूपाय नमः अयं ॥२३४॥ अनेकांत तत्त्वार्थ के ज्ञाता सूरि महान, निरावर्ण निजरूप लखि पायो पद निरवाण। ॐ ह्रीं सूरिदर्शनस्वरूपाय नमः अयं ॥२३५ ॥ मोहादिक रिपु नाशिके सूरि महासामर्थ, शिव भामिन भरतार नित रमै साधि निज अर्थ। ॐ ह्रीं सूरिवीर्यस्वरूपाय नमः अयं ॥२३६ ॥ पद्धड़ी छन्द निज निज आतम निष्पाप कीन, ते सन्त करें पर पाप छीन। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥ ॐ ह्रीं सूरिमङ्गलशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२३७॥ रत्नत्रय जीव सुभाव भाय, भवि पतित उधारण हो सहाय। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥ .. ॐ हीं सूरिधर्मशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२३८॥ तपकरज्यों कञ्चनअग्निजोग, हैशुद्धनिजातम पदमनोग। शिवमग प्रगटन आदित्य सूरि, हम शरण गही आनन्द पूरि॥ ॐ ह्रीं सूरितपशरणाय नमः अर्घ्यं ॥२३९॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
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