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________________ स्वतन्त्रता का अभियान मेरा मित्र साइंस कालेज में प्राध्यापक है। एक दिन उसने पूछा, 'महावीर ने मुनिधर्म की दीक्षा क्यों ली ?' इस प्रश्न का परम्परा से प्राप्त उत्तर मेरे पास था। वह मैंने बता दिया । उससे उसे सन्तोष नहीं हुआ। वह बोला, 'महावीर स्वयंबुद्ध थे इसलिए स्वयं दीक्षित हो गए, यह उत्तर बुद्धि को मान्य नहीं है। कोई कार्य है तो उसका कारण होना ही चाहिए।' उसके तर्क ने मुझे प्रभावित किया । मैं थोड़े गहरे में उतरा । तत्काल भगवान् अरिष्टनेमि की घटना बिजली की भांति मेरे मस्तिष्क में कौंध गई। अरिष्टनेमि सी बारात द्वारका से चली और मथुरा के परिसर में पहुंची। वहां उन्होंने एक करण चीत्कार सुनी। उन्होंने अपने सारथी से पूछा, 'ये इतने पशु किसलिए वाड़ों और पिंजड़ों में एकत्र किए गए हैं ?' 'चारात को भात देने के लिए। अरिष्टनेमि का दिल करुणा से भर गया। उन्होंने कहा, 'एक का घर बने और इतने निरीह जीवों के घर उजड़ें, यह नहीं हो सकता।' वे तत्काल वापस मुड़ गए । अहिंसा के राजपथ पर एक क्रान्तदर्शी व्यक्तित्व भवतीर्ण हो गया। मैं प्रागैतिहासिक काल के धुंधले-से इतिहास के आलोक में आ गया। वहां मैंने देखा-राजकुमार पावं एक तपस्वी के सामने खड़े हैं । तपस्वी पंचाग्नि तप की साधना कर रहा है । राजकुमार ने अपने कर्मकरों से एक जलते हुए काठ को चीरने के लिए पाहा । एका फार्मफर ने उस काष्ठ को चीरा । उसमें एक अर्धदग्ध सांप का जोश निकाला। इस घटना ने राजकुमार पार्श्व के अन्तःकरण को झकझोर दिया । उनका अहिलक अभियान प्रारम्भ हो गया। गया महावीर पा अन्तःस्पल किसी पटना से आन्दोलित नहीं हुआ है ? इन प्रश्न से मेरा मन बहुत दिनों तक नालोड़ित होता रहा। आखिर मुझे इस प्रश्न का
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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