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________________ १४ श्रमण महावीर भाई की स्मृति और कुमार की मृदु उक्ति से सुपार्श्व भावविह्वल हो गए। उनकी आंखों से आंसुओं की धार बह चली । वे सिसक-सिसककर रोने लगे। वे कुछ कहना चाहते थे पर वाणी उनका साथ नहीं दे रही थी। कुमार स्तब्धजड़ित जैसे एकटक उनकी ओर निहारते रहे । सुपार्श्व कुछ आश्वस्त हुए । भावावेश को रोककर कक्ष के एक आसन पर बैठ गए। कुछ क्षणों तक वातावरण में नीरवता छा गयी। 'वर्द्धमान ! भाई और भाभी अब संसार में नहीं हैं--इसका सबको दुःख है। पर उस स्थिति पर हमारा वश नहीं है । कुमार ! उस अवश स्थिति का लाभ उठाकर तुम घर से निकल जाना चाहते हो, यह सहन नहीं हो सकता।' 'चुल्ल पिता ! मैं घर से निकल जाना कहां चाहता हूं? मैं अपने घर से निकला हुआ हूं, फिर से घर में चला जाना चाहता हूं।' _ 'कुमार ! ऐसा मत कहो। तुम अपने घर में बैठे हो और उस घर में बैठे हो जिसमें जन्मे, पले-पुसे और बड़े हुए।' ___ 'चुल्ल पिता ! क्या मेरा अस्तित्व अट्ठाईस वर्ष से ही है ? क्या इससे पहले मैं नहीं था ? यदि था तो यह घर मेरा अपना कैसे हो सकता है ? मेरा घर मेरी चेतना है जो कभी मुझसे अलग नहीं होती। मैं अब उसी में समा जाना चाहता हूं।' 'कुमार ! तुम दर्शन की बातें कर रहे हो । मैं तुमसे अपेक्षा करता हूं कि तुग व्यवहार की बात करो।' 'व्यवहार क्या है, चुल्लपिता!' 'कुमार ! वज्जिसंघ का व्यवहार है-गणराज्य की परिषद् में भाग लेना और गणराज्य के शासन-सूत्र का संचालन करना।' 'चुल्लपिता ! मैं जानता हूं, यह हमारा परम्परागत कार्य है। पर मैं क्या करूं, हिंसा और विषमता के वातावरण में काम करने के लिए मेरे मन में उत्साह नहीं है।' ____कुमार के मृदु और विनम्र उत्तर से सुपार्श्व कुछ आश्वस्त हुए। उन्होंने वार्ता को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। वे कुमार की गहराई से सोचकर फिर बात करने की सूचना दे अपने कक्ष में चले गए।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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