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________________ ४२ पारदर्शी दृष्टि : व्यक्त के तल पर अव्यक्त का दर्शन एम जिस जगत् में जी के है, उसमें तीन काल है-अतीत, अनागत और वभाग | भारतीय दर्शनेको योज मोजकी प्रमापता है। एक पान में अनेक घटनाएं पनि नाप का सम्बन्ध होता है। कुछ पटनाएं बने पनि होती है, उनमें पोका सम्बन्ध होना। एक दूसरी पटना निमित परती है, उनमें भाग्ययार्य या सम्बन्ध होता है। व्यक्ति में जनेक गुपए है। जन जान है की गहरी जानाका मुख्याध्यापन के धार लिए हमारा मुल्या वर्तमान में ही होगा। पर 38:291 dart. 1 daña muqeatro vara på sit vende इस मामने मे माममेहन स्टीम उनमें निवी मन में भी देवष्य के उप गने पर पर निमा वी शिकायत इन्ट्रीपवर बापट दि पानी में भी मेरी Sr. - परिकृष्ण शरीर में 1 नीर द S"} एनस्पति की परे से। भक्त प्रतिरूप hez: forabi dely tekent het por fin ti ܀
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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