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________________ जीवनवृत्त : कुछ चित्र-कुछ रेखाएं उनमें कलिंग-नरेश जितशत्रु भी था। वह कुमार को देख मुग्ध हो गया। उसी समय उसके मन में कुमार के साथ सम्बन्ध जोड़ने की साध उत्पन्न हो गयी। कुछ समय बाद उसके पुत्री का जन्म हुआ। उसका नाम रखा गया यशोदा। पुत्री के वढ़ने के साथ-साथ जितशत्रु के मन की साध भी बढ़ रही थी। जितशत्रु की रानी का नाम था यशोदया। उसने जितशत्रु से कहा, 'पुत्री विवाह योग्य हो गयी है । अब आपकी क्या इच्छा है ?' 'इच्छा और क्या हो सकती है ? विवाह करना है। तुम बताओ, किसके साथ करना उचित होगा ?' 'इस विषय में आप मुझसे ज्यादा जानते हैं, फिर मैं क्या बताऊँ ?' 'कन्या पर माता का अधिकार अधिक होता है, इसलिए इस पर तुमने जो सोचा हो, वह बताओ।' 'क्या मैं अपनी भावना आपके सामने रखू, जो अब तक मन में पलती रही है?' 'मैं अवश्य ही जानना चाहूंगा।' 'कुमार वर्द्धमान बहुत यशस्वी, मनस्वी और सुन्दर हैं। मैं उनके साथ यशोदा का परिणय चाहती हैं।' 'मेरी भी यही इच्छा है, सद्यस्क नहीं किन्तु दीर्घकालिक । मैं तुम्हारी भावना जानकर इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हम बाहर से ही एक नहीं हैं, भीतर से भी एक हैं।' जितशत्रु ने दूत भेजकर अपना संदेश सिद्धार्थ तक पहुंचा दिया। सिद्धार्थ और त्रिशला-दोनों को इस प्रस्ताव से प्रसन्नता हुई। उन्होंने इसे कुमार के सामने रखा। कुमार ने उसे अस्वीकार कर दिया। वे वचपन से ही अनासक्त थे। वे ब्रह्मचारी जीवन जीना चाहते थे। ____ माता-पिता ने विवाह करने के लिए बहुत आग्रह किया। वे माता-पिता का बहुत सम्मान करते थे और माता-पिता का उनके प्रति प्रगाढ़ स्नेह था। वे एक दिन भी वर्द्धमान से विलग रहना पसन्द नहीं करते थे। वर्तमान को इस स्नेह की स्पष्ट अनुभूति थी। इसी आधार पर उन्होंने संकल्प किया था-'माता-पिता के जीवनकाल में मैं मुनि नहीं बनूंगा।' वर्तमान में मुनि बनने की भावना और क्षमता-दोनों थी। ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था । इसे वे बहुत महत्त्व देते थे। यह उनके ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा देने १. स्वेताम्बर परम्परा के अनुसार पुमार वर्ममान माता-पिता के स्नेह के सामने सक गए। उन्होंने विवाह कर लिया। दिगावर परम्परा के अनुनार पुमार वईमान ने विवाह का मनुरोध करा दिया। वे जीवनभर ब्रह्मचारी रहे।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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