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________________ सह-अस्तित्व और सापेक्षता १७७ पर्याय हैं। इसलिए वे अनित्य हैं, परिवर्तनशील हैं। इनके तल में परमाणु हैं । वे नित्य हैं, शाश्वत हैं। ये सब पर्याय उन्हीं में घटित होते हैं। इनके होने पर भी परमाणु का परमाणुत्व विघटित नहीं होता। ये विरोधी प्रतीत होने वाले पर्याय एक ही आधार में घटित होते हैं, इसलिए वस्तु जगत् में सबका सह-अस्तित्व होता है, विरोध नहीं होता । विश्व व्यवस्था के नियमों में कहीं भी विरोध नहीं है । उसकी प्रतीति हमारी बुद्धि में होती है । इस समस्या को भगवान् ने सापेक्ष-दृष्टिकोण और वचन-भंगी द्वारा सुलझाया। वस्तु में अनन्त युगल-धर्म हैं। उनका समग्र दर्शन अनन्त दृष्टिकोणों से ही हो सकता है। उनका प्रतिपादन भी अनन्त वचन-भंगियों से हो सकता है । वस्तु के समन धर्मों को जाना जा सकता है पर कहा नहीं जा सकता। एक क्षण में एक शब्द द्वारा एक ही धर्म कहा जा सकता है। एक धर्म का प्रतिपादन समन का प्रतिपादन नहीं हो सकता और समन को एक साथ कह सकें, वैसा कोई शब्द नहीं है। इस समस्या को निरस्त करने के लिए भगवान् ने सापेक्ष-दृष्टिकोण के प्रतीक शब्द 'स्यात्' का चुनाव किया। 'जीवन है'-इस वचनभंगी में जीवन के अस्तित्व का प्रतिपादन है । जीवन केवलं अस्तित्व ही नहीं है, वह और भी बहुत है । 'जीवन नहीं है'-इसमें जीवन के नास्तित्व का प्रतिपादन है। जीवन केवल नास्तित्व ही नहीं है, वह और भी बहुत है । इसलिए 'जीवन है' और 'जीवन नहीं है'-यह कहना सत्य नहीं है । सत्य यह है कि 'स्यात् जीवन है', 'स्यात् जीवन नहीं है।' ___अस्तित्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, इस कोण से वह है । नास्तित्व को स्वीकार किए बिना उसका अस्तित्व सिद्ध नहीं होता, इस कोण से वह नहीं है । उसके होने और नहीं होने के क्षण दो नहीं हैं । वह जिस क्षण में है, उसी क्षण में नहीं है और जिस क्षण में नहीं है, उसी क्षण में है। ये दोनों बातें एक साथ कही नहीं जा सकती। इस कोण से जीवन अवक्तव्य है। __वेदान्त का मानना है कि ब्रह्म अनिर्वचनीय है। भगवान् बुद्ध की दृष्टि में कुछ तत्त्व अव्याकृत हैं। भगवान् महावीर की दृष्टि में अणु और आत्मा, सूक्ष्म और स्थूल-सभी वस्तुएं अवक्तव्य हैं । किन्तु अवक्तव्य ही नहीं हैं, वे अखण्डरूप में अवक्तव्य हैं । खण्ड के कोण से वक्तव्य हैं। हम कहते हैं आम मीठा है। इसमें आम के मिठास गुण का निर्वचन है। केवल मिठास ही आम नहीं है। उसमें मिठास जैसे अनन्त गुण और पर्याय हैं । कुछ गुण बहुत स्पष्ट हैं । वह पीला है, सुगन्धित है, मृदु है। 'आम मीठा है'-इसमें आम के रस का निर्वचन है किन्तु वर्ण, गन्ध और स्पर्श का निर्वचन नहीं है । हम अखण्ड को खण्ड के कोण से जानते हैं और कहते हैं । उसमें एक गुण मुख्य और शेष सब तिरोहित हो जाते हैं । इस आविर्भाव और तिरोभाव के क्रम में वस्तु के अनन्त खण्ड हो जाते हैं और उनके तल में वह
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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