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________________ ( १२० ) अपने आत्म परिणाम उत्तरोत्तर निर्मल से निर्मल बनते चले जावे ऐसी उपाय करे | ऐसा घृणित कर्म तो कभी स्वप्न में भी न करे जिससे कि धर्म के ऊपर मर्म की चोट आपावे । भगवदुपासना, सद्गुरु सेवा आदि धर्म कार्यों में अग्रसर बना रहे ताकि और लोग भी उसे आदर्श मान कर उन कार्यों को तत्परता से करने लगे और अपना भला कर पावे इस प्रकार के श्रखण्डोत्साह का होना ही धर्म प्रभावना है । शङ्का - भगवदुपासना सद्गुरु सेवादि में अग्रसर बनना तो शुभ राग रूप होने से पुक्रिया है उसको धर्म कार्य मानना तो भूल है । उत्तर - भैय्या देखो धर्म नाम सम्यक्त्व का ही तो है और वह जिसके हो वह सम्यक्त्ववान् धर्मात्मा होता है वह जब अर्ह दुपासनारूप अपने परिणाम करता है तो वह उस धर्मात्मा का परिणाम धर्म कार्य नहीं तो और क्या है ? उसमे धर्म नही होता इस का अर्थ तो यह हुवा कि वहां पर सम्यत्व नही रहता सो क्या अर्हदुपासना के समय सम्यग्दृष्टि का सम्यक्त्व नष्ट हो जाता है ! नही, बल्कि आगम तो यह कहता है कि इतर गृहस्थोचित कार्य करते समय जो सम्यक्त्वी का समक्त्व है उसकी अपेक्षा श्रर्हदुपासना में विशदतर बनता है अतः वहां धर्म की प्रभावना हुवा करती है जैसा कि श्रीकुन्द कुन्दाचार्य ने अपने मूलाचार के पश्चाचाराधिकार में लिखा है
SR No.010540
Book TitleSamyaktva Sara Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanbhushan Maharaj
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages425
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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