SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री० हरिसत्य भट्टाचार्य। 'किसीको कष्ट न पहुचाओ, सबका भला करो'--यह उनका परम सिद्धान्त था | उनका महान् कारण हृदय लोकके-प्राणियोंके दुखशोकका अनुभव करता था-दुखकी महान् विषमताको व्ह जानने थे। इसीलिये उन्होंने धर्मका मूल सिद्धान्त अहिंसा घोषित किया! एक अत्याचारी शासकके अन्यायने जिनके निरपराध माता-पिताको कारावासमें रखवा, जिनके नवजात शिशुभाई अकालफालकवलित किये गये और स्वय राजपुत्र होते हुयेमी दूर दूर देशमै ग्वालों के बीच नृशंस कसके घातक प्रहारके भयमें जिन्हें रहना, पडा, उन कृष्णको सचमुच अपने जीवन अस्तित्व के लिये बचपनसेही लडना पडा । अभी वह पूरे युवामी नहीं हुये कि लोकने जाना, "वह रहेंगे या अत्याचारी क्स!" पर कसही क्यों ? कृष्णका महान् और प्रबल शत्रु तो जरासिंधु आ निकला । अपनी, अपने कुलकी और सभी शान्तिप्रिय लोककी क्षेम-कुशलके लिये कृष्णको जरासिंधु परमी चक्रप्रहार करना पडा | शान्त लोकके द्रोही अत्याचारी लोगों जैसे शिशुपाल, सल्ब आदिको मौतो उन्हें यमके घाट उतारना पड़ा था। किन्तु क्या इन., कृत्योंसे लोकमें धर्मराज्यकी स्थापना हुई थी ? सचमुच नहीं ! पशुवल पर तुले कौरव और पाडवोंको कैसे भुलाया बावे १ कृष्णने शान्ति और न्यायके लिये सधि करानी चाही, तो मदमत्त कौरव-पाडव परिहास करने लगे ! परिणाम कुरुक्षेत्रका नृशंस और घातक महाभारत युद्ध हुआ ! कृष्णके परिजन और सम्बन्धी लोगही वासनामें अधे हुये अधार्मिक जीवन विताने लगे और अकाल मृत्युके शिकार हुये । विचारिये कृष्णके हृदय पर मानव प्रकृतिको इस नशस प्रगतिक. क्या प्रभाव पड़ा होगा ! उनके चहुओर नीच क्रूरता नगी नाच रही थी ! इन जीवन घटनाओने कृष्णको कम करनेके लिये प्रेरणा की उन्होंने घोषित किया, “ मानव कर्म करनेमें रत रहे, परतुःउनके फलकी इच्छा न करे!" निष्काम , कर्म करना कृष्णका ध्येय था ' ___/महावीर और कृष्ण-दोनोंही दुनियाकी बुराईकी तह तक पहुचे हुये थे। दोनोंनेही लोकको मुक्तिका संदेश दिया। किन्तु महावीरने अपनी असीम करुणासे प्रेरित हो दुखी दुनियाको अहिंसा का-सिद्धात दिया। सबको विश्वप्रेमका पाठ पढाया। इसके विपरीत कि कृष्णको अपने जीवनअस्तित्वको स्थिर रखनेके लिये अन्याय, अत्याचार और अनाचारसे जूझना पड़ा था, इसलिये उन्होंने कर्ममय सन्यासकी शिक्षा लोगोंको दी। इस प्रकार कृष्ण और महावीरने जिस मानवधर्मका प्रतिपादन किया वह उनके विभिन्न जीवन व्यवहार और दृष्टिकोणपर अवलम्बित है। महावीर स्वभावसे बडे दयाल और कृपालु ये 1; इसलिये उन्होंने मानवको सिखाया कि यह किसी प्राणीकी हिंसा न करे और सबके साथ भलाई और अच्छाईका व्यवहार करे। जीवनकी विषमताओंने कृष्णको कर्म करनेकी आवश्यकता दर्शाई; इसलिये उन्हें ससारके प्रलोमन योथे भासे । उन्होंने मानवका कर्तव्य निर्धारित किया कि " मानव कर्म करे, परंतु फल पानेकी आकांक्षा न करे।" किन्तु इस कथनसे यह न समझना चाहिये कि भारतमें सन्यास और अहिंसा सिवान्सीका
SR No.010530
Book TitleMahavira Smruti Granth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain, Others
PublisherMahavir Jain Society Agra
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy