SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१७] हो सकता है इसमें कुछ भी शक नहीं है । तप अर्थात् इच्छाका निरोध। हमारे मनका सामर्थ्य इतना सो, निरवधि है कि. यदि यह सामर्थ्य अनेक तरह इच्छा, कामना, वासना. और झगड़े टटेमें न लगता रहे तो यह मानुषी आवश्यकीय कार्य करनेको शक्तिमान है । इच्छा. (Desire) और संकल्प (Wil) में अन्तर मात्र इतना ही है कि इच्छा बैल अलग बिखरा हुआ होता है तब संकल्पका बल केन्द्रीभूत होकर इष्ट प्रयत्नमें ही नियुक्त रहता है। छुटी छवाइ और भिन्नर उड़ती इच्छाओंकी शक्तिको संयममें रखकर उनका निरोध किया जाता है उसको तप कहते हैं। तत्वार्थसूत्रकार मी तप * के स्वरूपको इसीतरह दर्शाते हैं । व्यवहार तथा परमार्थमें विजय प्राप्त करनेका रहस्य एक ही है और वह यह है कि खराव इच्छाद्वारा नष्ट होते बलको एकत्रित करके उसको लगाना ही है। इस ओर सहन प्रयत्न करनेवालोंको हम उत्तम . और उत्तम परिणाम प्राप्त करते हुए देखते हैं तो. फिर गोशाला नैसा पुरुषार्थी पुरुष छ: महीने तक अपनी इच्छाओंका संग्रह वि. धिपूर्वक कर उस एकत्रित सामर्थ्यको अग्निक रूपमें परिणमन क्यों न कर सके ? इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है कि मनोद्रव्य यह अत्यन्त वेगवान और सूक्ष्म शक्ति (Tine Force) वाला है। शिक्षित संकल्पबलसे उस द्रव्यको अग्निरूपमें परिणमन कर सकते हैं। सिद्धिको प्राप्त किये प्रश्चात बहुत प्रसंगोंपर मनुष्य अपनी पूर्ववत् चित् निर्मलता नहीं रखता है उसका स्वार्थी और पशुत्वका * इन्छानिरोधस्तपः । नैसा पुरुषार्थी पुरुष सामर्थ्य को अग्निक मनोद्रव्य यह - -
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy