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________________ - - मैं आपके प्रभावको नहीं समझ सका । इसलिये मेरा यह आचरण क्षमा करे, प्रमु तो क्षमाकी ही मूर्ति थे उनको बदला तो लेना ही हीं था। तपके प्रमावसे उद्भवित यह अमानुषी वनाद देख कर गौशाला आश्चर्यनिमग्न हो गया। अभी तक उसने ऐसा चमत्कार कहीं . नहीं देखा था। मात्र शान्त सुधारसमय प्रमुके अलौकिक चरित्रका ही अनुभव किया या परन्तु इस तपोबल्से प्रकाशित देवी व्यक्ति करके उसने पहिले ही पहिल देखा। उसने प्रमुंके रास्ते, चरते २ पछा "हे भगवन् ! यह तेनोलेश्या कैसे प्रकट होती है ? प्रमुने उसे इसकी विधि कही। गोशालाका आज कलके सैकड़ों ९९ मनुष्योंकी नाई विधि सुनकर बैठा रहनेवाला पुरुष नहीं था परन्तु उसने विधिको अपलमें रख कर लन्धि प्राप्त करनेका हड़ निश्चय किया। जिस विधिसे गोशालाने यह विधि प्राप्त की यही विधि अब भी ग्रन्थोंमें उपलब्ध है मात्र कर्तव्यपरायण पुरुषोंकी ही कमी है। कूर्म गांवसे प्रमुं गोशाला सहित सिद्धार्थपुर गांवकी ओर गये परन्तु गोशालाकी इच्छा तेजोलेश्या प्राप्त करनेकी ओर बढ़ती जाती थी। इधर उधरके समुदायको अनायत्रीमें डालनेवाली महालब्धि प्राप्त करनेकी इच्छा उसके एक २ रोममें व्याप्त हो गई। विधि तो उसने प्रमुंके पाससे प्राप्त कर ली थी अतएव वह श्रावस्ती नामक गाँवमें प्रमुसे अलग हो गया और छः मास पर्यन्त उस गावमें निवास करके प्रमुंकी बताई हुई विधि अनुसार तपश्चरण करके तेनोलेश्याको सिद्ध की । तर सामथ्र्यसे यह प्रभाव प्राप्त
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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