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________________ [१५] गोशालाके लिये महावीर प्रमुके साथ बहुत समय तक रहनेस' यह जानना जरूरी था कि समक्ष मनुष्यपर हमला करनेसे वह अपना वर्त्तन नहीं छोड़ देता है परन्तु इससे उल्टा अपने मूल वर्तनके साथ अधिक लगा रहता है। चाहे जैसी अनिष्टकर वस्तु हम उसके हितके लिये सामनेवाले मनुष्यसे खिंचना चाहते हैं परन्तु वह उसको नहीं छोड़ता है इतना ही नहीं परन्तु हमारे इस खींच लेनेके प्रयत्नरूप वर्तनसे हम अपने इरादेसे उल्टा ही कार्य करते हैं अर्थात् मविष्यमें भी वह मनुष्य अपने अनिष्ट ग्राहकोंको कमी त्याग दें परन्तु ऐसा करनेसे उसको सदाके लिये त्याग करनेके संभवसे भी दूर कर देते हैं। हमारा बलात्कार सिर्फ अज्ञानतासे उसको यह सिखाता है कि यह अपने वर्तनपर अधिक जोरसे लगा रहे । गोशालाका इरादा तापसको सम्बोधित करनेमें चाहे कितना ही पवित्र क्यों न हो तो भी मनुष्य प्रकृतिके उपरोक्त रुखको उसने अपने लक्षमें नहीं रखा अतएव उसके इस तरहके सम्बोधनसे वह तापस उल्टा अपना उपशम स्वभाव जो कि उसने बहुत समयसे सम्हालकर रखा था गुमा बैठा और अत्यन्त क्रोधायमान होकर अपने तपके सामर्थ्यसे उसने अत्यन्त उग्र वन्हिज्वाला प्रकट की और उस अग्निको गोशाला पर प्रेरित की। गौशालाका शरीर अग्निसे जलने लगा और परित्राण करनेके लिये वह प्रमुके पास आया । प्रभुने इस तेजो लेश्याके सामने गौशालाकी रक्षा करनेके लिये शीतलेश्या रखी जिससे उस अग्निका सामर्थ्य नष्ट हो गया। प्रमुकी यह शक्ति देख कर वैशिकायन तापस उनके पास आया और प्रमुकी स्तुति करने लगा और कहने लगा कि
SR No.010528
Book TitleMahavira Jivan Vistar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Dosi
PublisherHindi Vijay Granthmala Sirohi
Publication Year1918
Total Pages117
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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