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________________ भव सुदत्त श्रीपाल नरेश, सागर जल संकट सुविशेष ॥२५॥ तहाँ पुनि तुमही भये सहाय, आनन्द से घर पहुँचे जाय । सभा दुश्शासन पकड़ो चीर, द्रपदो प्रण राखो कर धीर ॥२६।। सीता लक्ष्मण दोनों साज, रावण जोत विभीषण राज । सेठ सुदर्शन साहस दियो, शूली से सिंहासन कियो ।।२७।। बारिपेन नृप धरियो ध्यान, ततक्षण उपजो केवल जान । सिंह सादिक जीव अनेक, जिन सुमिरे तिन राखी टेक ॥२८।। ऐसी कोरति जिनकी कहूं, साह कहै शरणगत रहूं । इस अवसर जीवे यह बाल, मुझ सन्देह मिटे तत्काल ॥२६॥ वन्दी छोड़ विरद महाराज, __ अपना विरद निवाहो आज । और आलंबन मरे नाहि,
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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