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________________ मैं निश्चय कीनो मन माहिं ॥३०॥ चरण कमल छोड़ों ना सेव, मेरे तो तुम सतगुरु देव । तुम ही सूरज तुम ही चन्द, मिथ्या मोह निकन्दनकन्द ॥३१॥ धर्मचक्र तुम धारण धीर, विषहर चऋबिडारन वीर । चोर अग्नि जल भूत पिशाच, जल जङ्घम अटवी उदबास ॥३२॥ दर दुशमन राजा वश होय, तुम प्रसाद गर्ने नाहिं कोय । हय गज युद्ध सबल सामंत, । सिंह शार्दूल महा भयवंत ॥३३॥ दृढ़ बंधन विग्रह विकराल, तुम सुमरत छूटें तत्काल । पायन पनहीं नमक न नाज, ताको तुम दाता गजराज ॥३४॥ एक उपाय थप्यो पुन राज, तुम प्रभु बड़े गरीब निवाज । पानी से पंदा सब करो, भरी डाल तुम रीती करो ॥३५॥
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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