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________________ बांह गहेकी लाज निबाह । जहँ देखो तहं तुमही आय, घट-घट ज्योति रही ठहराय ॥२०॥ बाट सुघाट विषम भय जहाँ, तुम बिन कौन सहाई तहाँ । विकट व्याधि व्यंतर जल दाह, नाम लेत क्षण माहि विलाह ॥२१॥ आचार्य मानतुंग अवसान, संकट सुमिरो नाम निधान । भक्ता-मरकी भक्ति सहाय, प्रण गखें प्रगटे तिस ठाय ॥२२॥ चुगल एक नृप विग्रह ठयो, वादिराज नृप देखन गयो । एकी भाव कियो निसन्देह, । कुप्ट गयो कंचनसम देह ॥२३॥ कल्याण मदिर कुमुद चंद्र ठयो, राजा विक्रम विस्मय भयो । सेवक जान तुम करी सहाय, पारसनाथ प्रगट तिस ठाय ॥२४॥ गई व्याधि विमल मति लही, तहाँ फुनि सनिधि तुमही कही।
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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