SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२ तंदुल सित शशि- सम, शुद्ध, लीनो थार भरी । तसु पुञ्ज धरों अवरुद्ध, पावों शिव नगरी ॥ श्रीवीर ० ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निवं ० सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे । सो मनमथ-भंजन-हेत, पूजों पद थारे ॥ श्रीवीर ० ॐ ह्रीं श्री महावीर जिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्व० रस- रज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी । पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख - अरी ॥ श्रोवीर ० ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नवेद्यं । तम - खंडित मंडित-नेह, दीपक जोवत हों । तुम पदतर हे सुख-गेह, भ्रम-तम खोवत हों ॥ श्रोवीर ० ह्म श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोहान्वकारविनाशनाय दीपं हरिचन्दन अगर कपूर चूर सुगन्ध करा । तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कर्म जरा ॥ श्रीवीर ० ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय अष्टकर्म विध्व सनाय धूपं निर्व ० ऋतु-फल कल - वर्जित लाय, कंचन थार भरा । शिव-फल- हित हे जिन राय, तुम ढिंग भेट धरा ॥ श्रीवीर ० ॐ ह्रीं श्रीमहावीर जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व ० जल - फल वसु सजि हिम-थार, तन-मन-मोद धरों । गुण गाऊं भव-दधि तार, पूजत पाप हरों ॥ श्रीवीर ० ह्रीं श्रीवर्द्ध मानजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्व ०
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy