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________________ १२१ श्रीवर्द्धमान जिन-पूजा [कविवर वृन्दावनजी] मत्तगयंद श्रीमत वीर हरें भव-पीर, भरें सुख-सीर अनाकुलताई। केहरि-अंक अरीकरदंक, नये हरि-पंकति-मौलि सुआई। मैं तुमको इत थापतु हौं प्रभु, भक्ति - समेत हिये हरषाई । हे करुणा - धन - धारक देव, इहाँ अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई ॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्ध मानजिनेन्द्र ! अत्र मम मन्निहिनो भव भव वषट् । क्षीरोदधिसम शुचि नीर, कंचन-भृङ्ग भएँ । प्रभु वेग हरो भव-पीर, यात धार करों। श्रीवीर महा अतिवीर, सन्मति नायक हो । जय वर्द्धमान गुण-धीर, सन्मति-दायक हो ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्व० मलयागिर - चंदन सार, केशर - संग घसों। प्रभु भव-आताप-निवार, पूजत हिय हुलसों॥श्रीवीर० ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निव०
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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