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________________ १२० भगौ तब रंक सु देखत हाल, लहो तब केवल ज्ञान विशाल ॥ दियो उपदेश महाहितकार, सु भव्यन बोधि सम्मेद पधार । सुवर्णहिभद्र जू कूट प्रसिद्ध, वरी शिवनारि लही वसु ऋद्ध । जजूं तुम चर्ण दोऊ कर जोर, प्रभू लखिये अब ही मम ओर । कहै 'बखतावर रत्न' बनाय, जिनेश हमें भव-पार लगाय ॥ धत्ता जय पारस-देवं, सुर-कृत सेवं, वंदित चरण सुनागपती। करुणाके धारी, पर-उपकारी,शिव-सुखकारी कर्महती। ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाण पंचकल्याणकप्राप्ताय महाध्य निर्वपामीति स्वाहा। जो पूजे मन लाय, भव्य पारस प्रभु नित ही। ताके दुख सब जॉय, भीति व्याप नहिं कित ही ॥ सुख-सम्पति अधिकाय, पुत्र-मित्रादिक सारे । अनुक्रमसों शिव लहे, 'रतन' इम कहें पुकारे । (इति आशीर्वादः । पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि)
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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