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________________ १०१ हम ध्यावत पावत शर्म सिता ।। ॐ ह्रीं चैत्र कृष्णपञ्चम्यां गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । कलि पौष इकादशि जन्म लयो, तब लोकविर्षे सुख-थोक भयो। सुर-ईश जज गिर-शीश तब, हम पूजत हैं नुत शीश अब ॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णकादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राव अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। तप दुद्धर श्रीधर आप धरा, कलि-पौष इकादसि पर्व वरा। निज-ध्यानविष लवलीन भये, धनि सो दिन पूजत विघ्न गये । ॐ ह्रीं श्रीपौषकृष्णकादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा । वर केवल-भानु उद्योत कियो, तिहुँ लोकतणों भ्रम मेट दियो। कलि फाल्गुण-सप्तमि इन्द्र जजें, हम पूजहिं सर्व कलंक भजे ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यां केवलज्ञानमण्डिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। सित फाल्गुण सप्तमि मुक्ति गये,
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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