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________________ १०० सो ले पद पूजों सार, आकुलता हारी ॥श्रीचंदनाथ ॐ ह्रीं श्रीचन्दप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्व० तम-भंजन दीप सँवार, तुम ढिंग धारतु हों। मम तिमिर-मोह निरवार, यह गुनधारतु हों॥श्रीचंदनाथ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निव० दश गंध हुताशनमाहि, हे प्रभु खेवतु हों। मम करम दुष्ट जरि जाहि. यात सेवतु हों॥श्रीचंदनाथ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्व. अति उत्तम फल सुमंगाय, तुम गुन गावतु हों। पूजों तन मन हरषाय, विधन नशावतु हों॥श्रीचंदनाथ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्व० सजि आठों दरब पुनीत, आठों अंग नमों । पूजों अष्टम जिन मीत, अष्टम अवनि गमों ॥श्रीचंदनाथ० ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्व० स्वाहा पंचकल्याणक तोटक (वर्ण १२) कलि पंचम चैत सुहात अली, गरभागम-मंगल मोद भली हरि हर्षित पूजत मातु पिता,
SR No.010526
Book TitleJinendra Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Jain
PublisherRaghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi
Publication Year1981
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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