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________________ भगवान महावीर ने इन शाश्वत मूल्यों, अहिंसा की सूक्ष्मता और व्यापकता को अपने जीवन और कर्म में नये अर्य और सन्दर्भ प्रदान किये। अतिशय भोग, सम्पत्ति व सत्ता की अमर्यादित इच्छा, उनकी पूर्ति के लिये हिंसा के आचरण को धार्मिक मान्यता, जाति और लिंग के आधार पर भेद, दास-दासी प्रथा आदि भीषण विकृतियों से जर्जरित होते व्यक्ति और समाज की रुग्ण व्यवस्था के उपचार हेतु २५०० वर्ष पूर्व अहिंसा का प्रयोग किया। जीवन की समस्याओं के समाधान में अहिंसा की शक्ति प्रभावशीलता व व्यवहार्यता को प्रमाणित किया। आत्मा की स्वाधीनता, पुरुषार्थ की अनिवार्यता, कुल, जाति और लिंग के भेद के स्थान पर समस्त मानव जाति ही नहीं प्राणी मात्र की समान सत्ता और जीवन के अधिकार, सत्ता, सम्पत्ति और शक्ति के संग्रह और भोग के स्थान पर संयम और अपरिग्रह को प्रतिष्ठित किया। वैयक्तिक स्तर पर किये अहिंसा के प्रयोग से पूरे समाज के मूल्यों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ। अहिंसा को जीवन और जगत की विधायक शक्ति के रूप में स्वीकृति मिली। यह वीरवृत्ति का पर्याच वन गई और वर्द्धमान महावीर बन गये, अहिंसा महावीर के मार्ग-जैन दर्शन की आधार भित्ति है। २५०० वर्ष पूर्व हुआ यह प्रयोग ठहर गया शास्त्र और सम्प्रदाय में बद्ध होकर। निवृत्ति, अप्रवृत्ति के रूप में व्यवहत होने लगी। अहिंसा नकारात्मक हो गई और धर्म का अर्थ एकांगी हो गया लोकोत्तर मोक्ष के साधन के रूप में। महावीर की वीरवृत्ति अहिंसा पर कायरता, अकर्मण्यता और धर्म पर सामान्यतः और जैन धर्म पर विशेषतः जीवन से पलायन का आक्षेप सर्वथा निराधार और अनुचित नहीं कहा जा सकता। ___ महावीर के २५०० वर्ष बाद अहिंसा और सत्य का अभूतपूर्व प्रयोग भारतीय स्वाधीनता के संग्राम के काल में महात्मा गांधी के द्वारा किया गया। भारत की स्वाधीनता का संग्राम धर्म के शाश्वत मूल्यों से अनुप्राणित जार आजत रहा है। इसे आध्यात्मिक महापुरुषों और समुदायों से शक्ति गति और दिशा मिली है। महात्मा गांधी ने परतन्त्र भारत की मुक्ति को अपनी आध्यात्मिक मुक्ति के लिये अनिवार्य माना। मात्र जीव (एक व्यक्ति की, 'स्व' १०) मुक्ति के स्थान पर सत्य व अहिंसा के साधनों के द्वारा पूरे जीवन (समष्टि की, राष्ट्र की 'सर्व' की) की स्वाधीनता का सामूहिक स्तर पर महात्मा गाँधी द्वारा किया गया प्रयोग मानव सभ्यता, धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में अद्वितीय है। स्वाधीनता को मात्र राजनैतिक आजादी तक सीमित न रखकर समग्र जीवन की स्वाधीनता का व्यापक लक्ष्य, ध्येय वन गया । एक व्यक्ति की साधना, एक राष्ट्र की साधना बन गई। स्वराज्य की स्थापना के लिए शस्त्र व साधनों के रूप में सत्य और अहिंसा के अनूठे व साहसिक प्रयोग यस व्यष्टि और समष्टि दोनों के स्तर पर जीवन मूल्यों और जीवन शैली में युगान्तरकारी परिवर्तन हुये। सात और राष्ट्र के जीवन का कोई भी क्षेत्र प्रभावित हुये बिना नही रहा। सत्य, अहिंसा, स्वाधीनता, सत्याग्रह, असहयोग, स्वदेशी, स्वावलम्बन, श्रम, सेवा और त्याग, सामाजिक 'पात और स्वामित्व, के नये अर्थ और मूल्यों की स्थापना हुई। साध्य और साधन की शुद्धता मार सार्वजनिक जीवन की पवित्रता, विचार, वाणी और आचार की एकता के आदर्श स्थिर हुये। इन दिशा के अनुरूप व्यक्ति और संस्थायें तथा उनका चरित्र विकसित हुआ । स्वतन्त्रता के संघर्ष काल . कहना अत्युक्ति नहीं है। इस युग पुरुष के प्रयोगों से निवृत्ति और अहिंसा की विधायक पूर्णता प्रकट कार जाहसक शक्ति का सार्वभौम प्रभाव मानवीय सोच व समझ पर पड़ा। १४३ HO लों और आदर्शों के अनुरूप व्यात को गांधी युग कहना अत्युक्ति न
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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