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________________ गाँधीजी ने आत्मिक स्वतन्त्रता के लिये राष्ट्रीय स्वाधीनता को साधन बनाकर समूचे संघर्ष के आध्यात्मिक साधना बना दिया। इसके प्रभाव से अनेकानेक अध्यात्म साधकों को भी प्रेरणा और दिशा मिली। ____ महात्मा गाँधी जैन मुनि वेचर स्वामी व श्रीमद् राजचन्द्रजी आदि से भी प्रभावित रहे हैं वहीं महात्म गाँधी और उनके प्रयोगों से जैन धर्माचार्य भी प्रभावित हुये विना नहीं रह सके। महात्मा गाँधी और जैन आचार श्री जवाहरलालजी समकालीन हुये हैं। आचार्य श्री जवाहरलालजी उन विरल एवं विलक्षण सन्तों में अद्वितीय जिन्होंने अपने शाश्वत सिद्धान्तों की, युगीन वास्तविकताओं के सन्दर्भ में सम्यक् व्याख्या की और जैन साधु र गृहस्थ समाज को स्वाधीनता के मूल्यों के अनुरूप आचरण करने के लिये प्रेरित किया। इन मूल्यों की पूर्ति को धर साधना के रूप में स्वीकार करने के लिए शास्त्रीय मर्यादाओं को विस्तार देकर समस्त अनुयायिओं को रूढ़िगत वर्जनाओं से मुक्त करने की दृष्टि व दिशा देने का क्रान्तिकारी साहसिक प्रयास किया। धर्मनायक आचार्य श्री जवाहरलालजी और राष्ट्रनायक महात्मा गाँधी दोनों नायकों में विचार साम्य वे स्पष्ट दर्शन होते हैं। ___ झूठ, छलकपट और हिंसा की पर्याय मानी गई राजनीति को सत्य और अहिंसा के प्रयोग का माध्या और राष्ट्रकार्य को अपनी आध्यात्मिक मुक्ति का साधन महात्मा गाँधी ने बनाकर गृहस्थ जीवन में संन्यास धर्म र्क मर्यादा स्थापित की। आचार्यश्री ने संन्यस्त धर्माचार्य होते हुये, धर्म साधना की सीमाओं को विस्तार दिया, राष्ट्रकार को अध्यात्म साधना का आधार देकर बल दिया। लौकिक जीवन से परे लोकोत्तर जीवन तक सीमित व संकचित धर्म की रूढ़िगत एकांगिता के स्थान पर समग्र जीवन-धर्म की व्याख्या लौकिक धर्म एवं लोकोत्तर धर्म के रूप में की। सूत्र चारित्र धर्म (लोकोत्तर धर्म). बिना राष्ट्रधर्म (लौकिक धर्म) के टिक नहीं सकता। अतएव सूत्र चारित्र धर्म का पालन करने के लिये राष्ट्रधर्म का भी पालन करना आवश्यक है। किसी भी अवस्था में राष्ट्र धर्म का निषेध नहीं किया जा सकता। केवल सूत्र चारित्र धर्म को धर्म समझना और राष्ट्र धर्म को धर्म न मानना, मकान की नींव खोदकर उसे स्थिर करने अथवा वृक्ष का जड़ उखाड़कर उसे हरा-भरा बनाने के समान है।' (आ.ज.ला.) ___ आत्म कल्याण में तत्पर (साधु और श्रावक) रहने वालों के लिये कुल, ग्राम, नगर व राष्ट्र धर्म (लौकिक धर्म) का पालन करना आवश्यक है। बिना इन धर्मों के पालन के शद्ध आचार धर्म संभव नहीं हैं। भगवान महावीर कैवल्य प्राप्ति के बाद मौन होकर एकान्त में नहीं बैठ गये अपितु लोकहित में, समष्टि के हित में देशा-देशान्तर में भ्रमण करके मोक्ष का राजमार्ग बतलाने में सक्रिय रहे। भगवान ऋषभ देव ने भी अपन जावन का बहुतांश लोक जीवन व लोक धर्म के विकास में लगाया।' आचार्यश्री ने सदैव राष्ट्रभाव और राष्ट्र धर्म के पालन की प्रेरणा दी। कहा कि राष्ट्र की रक्षा म सबका रक्षा है और राष्ट्र के विनाश में सबका विनाश है। मातभमि भारत के सम्मान और गौरव की रक्षा आर उसका मुक्ति के लिये स्वदेशाभिमान, स्वार्पण और सेवा के सूत्र स्वीकार करने की आवश्यकता है। प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने बीकानेर रियासत के प्रधानमंत्री की हैसियत से सर श्री मनुमान मेहता के लन्दन प्रस्थान के अवसर पर मनभाई को दिया आशीर्वाद रूप उपदेश आचार्यश्री की राष्ट्र का पता की पीड़ा और स्वाधीनता की चाह को प्रकट करता है। १४४
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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