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________________ बहुआयामी प्रतिभा के धनी श्री जशकरण डागा भारतीय संत परम्परा में समय-समय पर अनेक ऐसी महान् विभूतियां हुई हैं, जिन्होंने स्व पर कल्याण के साथ-साथ भारत देश का नाम भी सम्पूर्ण विश्व में गौरवान्वित किया है। परमश्रद्धेय जैनाचार्य श्री जवाहरलालजी म.सा. भी एक ऐसी ही विरल विभूति हुई हैं। आप जैन श्रमण परम्परा में पू. आचार्य श्री हुकमीचन्दजी म.सा. के षष्टम् पट्ट पर शासन प्रभावी आचार्य हुए हैं। आप आचार्य के छत्तीस गुणों से सुशोभित थे। दशा श्रुतरकंध की चतुर्थ-दशा में इन्हीं गुणों को संक्षिप्त कर आठ प्रकार के कहे हैं। यथा- (१) आचार विशुद्धि (२) शास्त्रों के तलस्पर्शी ज्ञाता (३) स्थिर सहनन व पूर्णेन्द्रियता (४) वचन की मधुरता व आदेयता (५) अस्खलित वाचना (६) ग्रहण व धारणा मति की विशिष्टता (७) शास्त्रार्थ में विचक्षणता तथा (८) संयम निर्वाहार्थ साधन संग्रह की कुशलता। आपश्री में ये आठों विशेषताए बखूबी थी, जिससे आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी युगप्रधान आचार्य माने गए हैं। ___ सामाजिक रूढ़ियों व विकृतियों के उन्मूलक तत्कालीन समय में समाज में अनेक कुरूढ़ियां एवं विकृतियां प्रभावित थी जैसे विधवाओं को हेय दृष्टि से देखना, दहेज की मांगनी करना, कन्या विक्रय करना, गरीबा से ऊँची दरों का ब्याज वसूल करना आदि-आदि। आपने इन विकृतियों का उन्मूलन करने में महत्त्वपूर्ण योगदान था। दहेज. कन्या विक्रय आदि के लिए आपने स्थान-स्थान पर हृदय स्पर्शी प्रवचनों में दहेज का मानना करने या तिलक का पहिले से निश्चय करने, कन्या विक्रय करने, मृत्युभोज करने आदि कई कुरूढ़ियों पर सवाल प्रहार करते, और भाई बहिनों को सामूहिक रूप से इन कुप्रथाओं के त्याग कराते थे। मृत्युभोज में सम्मिाला - होने, मृत्यु प्रसंग पर बाद में पगड़ी के दस्तूर पर आने वालों के लिए मिठाई न बनाने, व कोई मिठाई बनाव ता, खाने, भाई के विरुद्ध भाई द्वारा कचहरी में न जाने, आदि नियमों के संकल्प कराते थे। आपने अधिक दर ब्याज लेने का भी विरोध किया। आपने स्पष्ट किया कि जैसे शस्त्र से हिंसा होती है, वैसे ही लोगों से ऊचा दर ब्याज वसूल करने से उनका शोषण होता है तथा यह गरीबों (किसानों) के गले काटना है। इससे उनका बड़ी दयनीय हो जाती है जब ब्याज चुकाने के लिए उन्हें अपने जेवर, मकान खेत आदि विक्रय या रहन कर जाते हैं। आपके प्रवचनों से प्रभावित हो अनेक संघों के श्रावकों ने साहकारी ब्याज की प्रचलित मर्यादा सजा ब्याज लेने के त्याग किए थे। अहंकारवर्धक पदवियां न लेने के लिए आप फरमाते 'उपाधियां व्याधियां हैं। 'जो वास्तव में उठ जाता है, उसे उपाधियों से क्या मतलब है।' एक बार दिल्ली के स्थानकवासी जैन संघ ने आपका व १२८
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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