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________________ में किसी पर सख्ती नहीं करता। मेरा कर्तव्य आपके कल्याण की बात बता देना लगे वही कर सकते हो पर मैं आपको चेतावनी देना चाहता हूं कि अब पहले जैसा जा कर आंधी आ रही है। यह आंधी उठकर सभी ढोंगों को अपने साथ उड़ा ले जायेगी। 'लोग अपनी अपनी जातियों में सुधार के लिए कानून बनाते हैं। जातीय सभाओं में । लेकिन जब तक हदय में हराम आराम से बैठा है तब तक तुमसे क्या होना जाना है सुधार-सुधार' चिल्ला रहे हैं। सुधार कहीं नजर नहीं आता। इसका कारण ? लोगों के दिलों से । कहां से उक्त दोनों विचारों में युग क्रांति की प्रचण्ड ध्वनि है। आज पहले से ज्यादा दोंग है। मलों में 'हरागी' पहले से अधिक मजबूती से आसन जमाए बैठा है । पूज्य आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. सा. ने पराधीनता को पाप माना और र ना के स्वरों को दृढ़ता पूर्वक गुंजाया। आज स्वतन्त्रता काल में हम मानसिक, सांस्कृति क पराधीनता की मानसिकता का कर पा रहे हैं। त्राण का एक ही मार्ग है पराधी कार करो। आचार्य पद की मर्यादा अटकती नहीं पराधीनता के विरोध में। जवाहर तारे हदय को झकझोर रही है। कर्तव्यपालन में डर कैसा? साधु को तो सभी उपसर्ग परिपह सहने चाहिए । नाना चाहिए। सभी परिस्थितियों में धर्म की रक्षा का मार्ग मुझे मालूम है। यदि कर समाज का आचार्य गिरफ्तार हो जाता है तो इसमें जैन समाज के लिए किसी प्रकार मामी TIT-IIT में नाना है।"
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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