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________________ जवाहराचार्य की प्रासंगिकता प्रो. सतीश मेहता महापुरुष अनागतदर्शी होते हैं। वे अपने समय से आगे चलते हैं। उनकी कही सदा सही सिद्ध होती है। आचार्य प्रवर जवाहरलाल जी म. सा. ऐसे ही युग-मनीषी थे। देह तो सदा किसी की कायम रहती नहीं पर आत्मा रूप महान दीर्घदर्शी सदैव अमर रहते हैं। पूज्य . आचार्य श्री जवाहरलाल जी म. सा. ने अपने जमाने में जो कुछ कहा, साधुओं व श्रावकों के हित के लिए जो जो . चेतावनियां दीं-शताब्दी से ऊपर के काल परिवेश में उनका युगबोध आज भी प्रासंगिक और प्रेरक प्रतीत हो रहा है। .. समाज सुधार की गति का संचरण कभी मंद कभी तीव्र चलता रहता है। जिस समय के दौर में आज :हम हैं, यह समय मामूली नहीं है। चारों और अशांति है। भय ही भय है। विषमता का बोलबाला है। नित्य नई : पनपती रीतियां तथा प्राचीन कुरीतियां समाज को भीतर से खोखला कर रही हैं। दिखावा, ढोंग और शान-शौकत की चपेट से कोई वर्ग, कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। युगाचार्य जवाहरलाल जी म. सा. ने उन स्थितियों को बरसों पूर्व भांप लिया था। उन्होंने विकट से .. विकट समस्या का समाधान हमें दिया है। समाज के दीनजनों के प्रति उन का हृदय करुणामय स्वरों में बोलता : है—उन्हें मार्गदर्शन, दिलासा और दिलेरी दिलाता हुआ - 'हे गरीब! तूं क्यों चिन्ता करता है? जिसके शरीर में अधिक कीचड़ लगा होगा। वह उसे छुडाने का अधिक प्रयत्न करेगा। तूं भाग्यशाली है कि तेरे पैर में कीचड़ अधिक नहीं लगा है। तूं दूसरों से ईष्या क्या करता । है ? उन्हें तुझ से ईर्ष्या करनी चाहिये । पर देख सावधान रहना, अपने पैरों में कीचड़ लगने की भावना भा तर दिल में नहीं होनी चाहिए। जिस दिन, जिस क्षण यह दुर्भावना पैदा होगी उसी दिन और उसी क्षण से तेरा सामान्य पलट जाएगा। तेरे शरीर पर थोड़ा सा भी मेल है तो उसे छुड़ाता चल ।' कितनी बड़ी बात कह दी आचार्य प्रवर ने! यह कीचड़-परिग्रह का, पाप बोध का, शोषण का, दिखावे और तृष्णा का, कदाचार का। उससे बचे। गरीबी कल भी थी, आज भी है। गरीब के नाम पर दया-मया का, उद्धार का मिथ्याचार कल और आज तो गरीबी के उन्मूलन को लेकर राज और समाज के लोग नाना प्रकार के प्रपंच अपने-अपन मचा धुआंधार प्रसारित कर रहे हैं। आचार्यश्री ने ऐसे मिथ्याचारों का जिस दृढ़ता से प्रतिवाद किया है उन स्वरों का घोष आज १ री है। दिल . है गर के प्रपंच अपने-अपने मंचों पर । ११२
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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