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________________ युग-पुरुष हजारीमल बांठिया युग प्रवर्तक, ज्योतिर्धर आचार्य श्री जवाहरलालजी अपने समय के युगद्रष्टा, गांधीवादी, क्रान्तिकारी जैन आचार्य हुए हैं। समस्त भारत में गांधी - लहर चल रही थी स्वदेशी अपनाओ का नारा बुलन्दी पर था। गांधीजी ने सत्य और अहिंसा का सन्देश श्रीमद् राजचन्द्र से हृदयंगम किया था वे इसी को आधार मानकर भारत को आजादी दिलाना चाहते थे और इसी पथ पर चल कर देश ने आजादी पाई । आचार्य श्री जवाहरलालजी भी सत्य और अहिंसा के मार्ग से समाज में नई चेतना दे रहे थे । वे भी गांधीजी से प्रभावित हुए और वे पहले जैनाचार्य थे जिन्होंने स्वदेशी वस्तुएं अपनाने की समाज को प्रेरणा दी और स्वयं ने खद्दर का वस्त्र अपनाया । मुझे आज से पचास वर्ष की दुःखद घटना अच्छी तरह याद है जब किसी ने सुना पूज्यश्री जवाहरलालजी महाराज साहब का वि.सं. २००० आसाद शुक्ला अष्टमी को देवलोक हो गया, हजारों नर-नारियों के पैर भीनासर की ओर चल पड़े और मैं भी गया । पूज्य आचार्य महाराज को वैकुंठी बनाकर बिठाया गया था। दर्शनार्थियों का तांता बंध गया। मैंने भी अपनी मूक श्रद्धाञ्जलि पूज्यश्री के चरणों में दी । वैकुंठी में बैठे आचार्यश्री का केमरे से फोटू खिंचवाया जाय कि नहीं, यह चर्चा जोरों से वाद-विवाद का विषय बनती जा रही थी। फिर भी किसी ने फोटू खींच ही लिया और उसने फोटू से बड़े चित्र बनाये और घर-घर में बेचकर लाभ उठाया और उस वक्त के फोटू आज भी लोगों के घरों में दर्शनीय है। धूमधाम से वैकुंठी उठी 'जय जवाहरलालजी महाराज साहब' के जयघोष से आसमान गूंज उठा। जैन समाज के सभी वर्ग के प्रबुद्ध नागरिक और प्रमुख पुरुषों ने पूज्यश्री को अश्रु मिश्रित नेत्रों से श्रद्धाञ्जलि अर्पित की। आचार्यश्री स्वर्गारोहण के कार्यक्रम की सारी बागडोर स्व. सेठ चम्पालालजी बांठिया के हाथों में थी । आचार्य श्री देवलोक से भीनासर 'तीर्थधाम' वन गया। आज भी जवाहर किरणें वहाँ से अपनी आभा सर्वत्र बिखेर रही हैं। में श्रीगद् जवाहराचार्यजी अपने समकालीन जैन आचार्यों में एक प्रभावक आचार्य थे। मंदिर-मार्गी आचार्यो -प्रभावक आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरिजी महाराज साहब का सर्वोच्च स्थान था तो साधुई श्री जवाहरलालजी महाराज साहव का। वे आदर्श साधु-परिचर्या के पक्षधर थे। शिथिलता उन्हें स्वीकार थी। व्यर्थ आडम्बर से कोसों दूर थे। जैन संस्कृति के सजग प्रहरी और जैन सिद्धान्तों के व्यावहारिक साकार थे। इसलिये उस वक्त यह उक्ति प्रसिद्ध हो गई थी ढूंढिया धर्म पक्को, पैसो लागे ना टक्को' । कठोर जीवन के पक्षपाती थे, समाज को भी संयमित जीवनयापन करने का उनका दिशा-निर्देश था। इसीलिये रामासी समुदाय में आचार्यश्री के समुदाय का अपना अलग ही विशिष्ट स्थान है। वे सचमुच जैन जगत के GEM थे। आचार्य श्री ने अपनी पैनी दृष्टि से अपना उत्तराधिकारी भी प्रज्ञा-पुरुष, समता रस भंडार श्रीजी महाराज को अपने जीवनकाल में ही आसीन कर दिया था । 0
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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