SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्यश्री कहा करते थे कि नारी ने मानव जीवन का निर्माण किया है, उसे पानी का या चरित्र बनाया है, वढ़ाया है और उसे फलने-फूलने का अवसर दिया है। गांधी, जवार, विका जन्म देने वाली नारियां ही थी। इसीलिए आचार्यश्री ने कई सतियों के जीवन का बड़ा सुन्दर और र का है। अपने पुत्र को स्तनपान कराने वाली नारी समय पड़ने पर अपने पति और पुत्र को मांगन जियश्री का अभिनन्दन करने के लिए सदा तैयार रहती थी। रानी दुर्गावती, हाड़ी रानी, लक्ष्मीबाई, चलना अपने हाथ में तलवार उठाकर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाये थे। आचार्यश्री नारी के सभी रूपों का सम्मान करते आचार्यश्री की मान्यता थी कि नारी लक्ष्मी है, सरस्वती है, दुर्गा है। कभी वह खड्ग उटकर की न करती है, कभी थके-हारे पति को बड़े प्रेम के साथ छाती से लगाकर उसे धैर्य देती है। कई वार आचार्यश्री भी अपने व्याख्यानों में नारी के गुणों की सराहना करते हुए का नारी का जीवन तप, त्याग, बलिदान और संकटों से भरा हुआ है। दमयन्ती को, सीता को, अंजना को अपने जीवन में कठोर परीक्षा देनी पड़ी फिर भी वे नहीं घबराई । नारी का जीवन कर्तव्य, सेवा, धर्म, वन और समर्पण का पर्याय रहा है। नारी श्रद्धा और भक्ति की प्रतीक है। तभी तो कामायनी में प्रसावजी की : नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो पीयूप स्रोत सी वहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में। भारतीय नारी पति के बिना अपने अस्तित्व की कोई कल्पना भी नहीं करती। पति का नाम रहन-सहन और स्वास्थ्य के लिए वह सदैव चिन्तित देखी गई है। पति की कुशलता के लिए पति थे. गस्थ्य के लिए, पति की दीर्घायु के लिए वह व्रत, उपवास करती हुई परमेश्वर से मंगलयामना करनी ' र भारतीय नारी का सर्वस्व है। पति के बिना उसका कोई अस्तित्व नहीं। वह हर समय अपना नाम : पति को देती रही है। सीता, गांधारी, राजमती, मदनरेखा जैसी नारियां भारत में ही हो सकती है ! गांधार्गाला सात का वरण कर देश का भाल ऊंचा उठाया था। गांधारी को इस उदार त्याग दीक्षिाको कात्मवलिदान का पाठ किसने पढ़ाया था? पति के जंगल में छोड़कर चले जाने के दारी पालन वाली दमयन्ती को कौन नहीं जानता? हाड़ी रानी और पन्ना धाय का बर :::::: है। जीजाबाई साहस और वीरता भरी कहानियां शिवाजी को क्यों सुनाती थी ?
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy