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________________ नारी जागरण के उद्घोषक - मिट्ठालाल मुरड़िया 'साहित्यरत्न'. आचार्य जवाहर गांधी युग और स्वातन्त्र्य संग्राम के क्रांतिकारी संताचार्य थे। वे बड़े दूरदर्शी, प्रगल्म बुद्धि वाले चतुर, जागरूक, ओजस्वी वक्ता, प्रबुद्ध चिन्तक, महान विचारक और प्रभावशाली आचार्य थे। संत मर्यादाओं में रहते हुए भी उनमें देशप्रेम और देशभक्ति छलकती थी। उनकी रग-रग में और रक्त के कण-कण में राष्ट्रीयता भरी हुई थी। वे जैनत्व के उपासक और भारतीय धर्म-दर्शनों के मर्मज्ञ विद्वान थे। चतुर्विध संघ के माने हुए आचार्य, गणमान्य युगदृष्टा और युगसृष्टा थे। आचार्य जवाहर सचमुच जवाहर के रूप में चमकते हुए हीरे थे। जैन गगन और धर्माकाश के उज्ज्वल नक्षत्र थे। उनकी वाणी केवल मरुधरा की वाणी न रहकर राष्ट्र की शाश्वत वाणी बन गई। उनके संतत्व, आचार्यत्व और यशस्वी व्यक्तित्व पर स्वातन्त्र्य संग्राम का और देश काल की परिवर्तित परिस्थितियों का समुचित प्रभाव पड़ा था। वे युग को बनाने वाले प्रतापी पुरुष थे। वे लोक जीवन को जागृत करने वाले, जनजीवन को आन्दोलित करने वाले कीर्तिपुरुष थे। उनका साहित्य देशप्रेम और देशभक्ति से भरा हुआ है। धन्य है आचार्य जवाहर तुम्हें ! धन्य है यह धरा ! भारत की पावन धरा आज भी तुम्हारा नाम स्मरण कर स्वयं की कृतकृत्य अनुभव कर रही है। नारी-जागरण और नारी उत्थान में आचार्य जवाहर की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आज से ५० वर्ष पूर्व नारी कई बन्धनों से जकड़ी हुई थी। उसका घर से बाहर निकलना बड़ा कठिन था। वह अपमान, अन्याय, अत्याचार और संकीर्ण भेदभावों से संत्रस्त थी। ऐसे समय में आचार्यश्री ने नारी को शिक्षा और साहित्य के माध्यम से जगाया । उसमें उत्साह और साहस भरा और उसका आत्मबल बढ़ाया। आचार्यश्री का कहना था कि नारी वन्दनीय है, महापुरुषों की जननी है, माता है, बहन है, बेटी है, पर है। नारी का दिल दया और करुणा से भरा हुआ होता है। उसमें आत्मीयता, सहृदयता, क्षमा, धैर्य आर विप :: है। नारी प्रेम और एकता की प्रतीक है। कला, शील और सौंदर्य की देवी है। - आचार्य भी मानते थे कि नारी सहना जानती है, कहना नहीं। पुरुष के अत्याचार सहकर भा का अपमान नहीं करती। यह इस देश की संस्कृति है। यह इस देश की मिट्टी का प्रभाव है। उसका मना - धर्म का प्रभाव है। क्या ऐसी नारियाँ किसी अन्य देश में हुई हैं ? विदेशों में सामान्य बात पर तलाक . : नारी पुरुष का अपमान नहीं करती। वह तो पुरुष को पूजती है। सभी कष्टों और दुःखों को भूलकर पु. मम्मान करती है। क्योंकि परुष उसका स्वामी है। द:ख-सख का साथी है धर्म-कर्म का चितेरा है। नारा तर है, उदासी में प्रसन्नता के पुष्प खिलाती है, महक बिखेरती है। नारी कष्ट सहिष्णु है।
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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