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________________ - जिसे सुनने से मोह में कमी हो, वही धर्मकथा है और जिसे सुनने से मोह में कमी न हो, बल्कि मोह उलटा बढ़ जाय, वह धर्मकथा नहीं, मोहकथा है। - जब तक धर्मवृक्ष के ग्राम धर्म रूप मूल को नीति के जल से सींचा न जायेगा, तब तक सूत्र धर्म और चरित्र धर्म रूपी मधुर फल की आशा नहीं की जा सकती। - गरीबों के लिए जव तक पर्याप्त अन्न और वस्त्र का प्रवन्ध नहीं होता तब तक राष्ट्र धर्म अपूर्ण है। - ईश्वर की प्रार्थना से समभाव पैदा होता है और समभाव ही मोक्ष का द्वार है। - ज्ञानपूर्वक होने वाला समभाव ही सामायिक है। - गुण देखकर उन्हें प्राप्त करने के लिए की जाने वाली वन्दना ही सच्ची वन्दना है। - जो आत्मा स्व-स्थान का त्याग करके, प्रमाद के वश होकर पर-स्थान में चला गया हो, उसे फिर स्व-स्थान में लाना प्रतिक्रमण है। कायोत्सर्ग करने से अतीतकाल और वर्तमान काल के पापों के प्रायश्चित की विशुद्धि होती है। -प्रत्याख्यान करने से आस्रव-द्वारों का निरोध होता है। - सहिष्णुता कायरता का चिह्न नहीं वरन् वीरता का फल है। - समानता का आदर्श जीवन में उतारने के लिए सबसे पहले जीवन में मानवता प्रकट करनी पड़ती है। - वन्धुताविहीन साम्यवाद विनाश का कारण बन सकता है। - हम अपने ही किये कर्म का फल भोगते हैं, यह जान लेने पर शान्ति ही रहती है, अशान्ति नहीं होती। अपनी आँख में अपनी ही ऊंगली लग जाय तो उपालम्भ किसे दिया जाय ? - प्रमाद हिंसा है, विषय लोलुपता भी हिंसा का कारण है। - अहिंसा का विधि अर्थ है-मैत्री, बन्धुता, सर्वभूत-प्रेम | जिसने मैत्री या वन्धुता की भावना जागृत नहीं की है, उसके हदय में अहिंसा का सर्वांगीण विकास नहीं हुआ है। जिस विचार, वात और कार्य का त्रिकाल में भी पलटा न हो, जिसको अपनी आत्मा निष्पक्ष भाव से अपनाये, जिसके पूर्ण रूप से हदय में स्थित हो जाने पर भय, ग्लानि, अहंकार, मोह, दम्भ, ईप्या, द्वेप, काम, क्रोध, लोभ आदि कुत्सित भाव निःशेष हो जावे, जो भूत में था, वर्तमान में है और भविष्य में होगा तथा जिसके होने पर आत्मा को वास्तविक शान्ति प्राप्त हो, उसी का नाम 'सत्य' है। - अपने सिर पर लिए हुए कर्तव्य का पालन न करना भी एक प्रकार की चोरी है। प्राचर्य दिव्यशक्ति और दिव्यतेज प्रदान करने वाला महान् रसायन है। जो मनुष्य पूर्ण प्रामचर्य का पालन कर सकता है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं रहती। जस गलीन कांच में मुंह नहीं दीखता, उसी प्रकार लोभ और तृष्णा से भरे हुए हदय को न्याय नहीं माना। -यह सम्पत्ति सफल है जो संसार के कल्याण का साधन बनती है।
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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