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________________ सूक्तियां डॉ. नरेन्द्र भानावत कीयालाल लोढ़ा • ईश्वर का ध्यान करने से आत्गा स्वयं ईश्वर बन जाता है। पर जब तक ईश्वरत्व की अनुभूति नहीं होती तब तक प्राणियों को ही ईश्वर के स्थान पर स्थापित कर लो। संसार के प्राणियों को आलया के समान समझने से ___ दृष्टि ऐसी निर्मल वन जायेगी कि ईश्वर को भी देखने लगोगे और अन्त में स्वयं ईश्वर बन जाओगे। • मन, वाणी और क्रिया को शुद्ध करके जब परमात्मा की प्रार्थना की जाती है तो शान्ति प्राप्त होती ही है। • परमात्मा से भेंट करने का सीधा मार्ग उराका भजन करना है। • आत्मा में जो गुण वैभाविक हैं, जो उपाधिजन्य हैं अर्थात् काल, क्षेत्र, या पर्याय आदि पर-निमित्त से उत्पन्न हुए। हैं, जो स्वाभाविक नहीं हैं, वे गुण वदल जाते हैं, परन्तु आत्मा के स्वाभाविक गुणों में परिवर्तन नहीं होता। • आत्म-बल को प्रगटाने के लिए तुम्हें आत्मा के विकार दूर करने पड़ेंगे। आत्मा के विकार ज्यों-ज्यों हटते जाएग त्यों-त्यों तुम्हारी आत्म-शक्ति का आविर्भाव होता चलेगा। • भौतिकवाद को समझने पर ही अध्यात्मवाद को और अध्यालावाद को समझ लेने पर ही भौतिकवाद का पूरा तरह समझा जा सकता है। • जो विज्ञान मनुष्य की मनुष्यता नहीं बढ़ाता, बल्कि उसे घटाता है और पशुता की वृद्धि करता है, वह मानव-जाति के लिए हितकर नहीं हो सकता। __ • पापी, दुष्ट और दुरात्मा को भी अपने समान मानकर, उसके भी उद्धार की भावना रखने वाला ही सद्गुरु है। • महापुरुष अपने आचरण का आदर्श जगत् के हित के लिए उत्तराधिकार के रूप में छोड़ गये हैं। '• लौकिक धर्म से शरीर की और विचार की शुद्धि होती है और लोकोत्तर धर्म से अन्तःकरण एवं आत्मा का। • धर्म, व्यक्ति और समाज का जीवन है। जिन्हें आनन्दमय जीवन पसन्द नहीं है वे धर्म से दूर रह सकत । • कर्मों की स्थिति नाशवान् है, इस दृढ़ विश्वास के साथ आगे बढ़ते जाओ तो आत्मा के समस्त आवरण नष्ट हो जायेंगे। दृढ़ विश्वास वाले के प्रगाढ़ कर्म भी शिथिल पड़ जाते हैं और तीव्र रस वाले कम माप हो जाते हैं। . ६२ वरण जल्दी | रस वाले कर्म मन्द रस वाले
SR No.010525
Book TitleJawahar Vidyapith Bhinasar Swarna Jayanti Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranchand Nahta, Uday Nagori, Jankinarayan Shrimali
PublisherSwarna Jayanti Samaroha Samiti Bhinasar
Publication Year1994
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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