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________________ ५५ हिंदी पदार्थ - (पहिला) प्रथम (अणुव्रत) साधुकी अपेक्षा जो छोटा व्रत है (थुलाउ) स्थूल (पाणाइवायाउ ) प्राणातिपातसे ( वेरमण ) निवृत्तिरूप ( त्तस ) त्रस (जीव ) जीव जैसेकि ( बेइंदिय) हींद्रिय जीव जैसे कि सीप शख जोकादि ( तेइंद्रिय) त्रीइंद्रिय जीव जैसेकि जू पिपीलिकादि ( चउरिंदिय) चतुरिंद्रिय जीव जैसे मक्षिकादि ( पंचेंदिय ) पचेंद्रिय जीव जैसेकि नारकी मनुष्य तिर्यगू देव ( जाणी ) जान करके ( पीच्छी ) परीक्षा करके ( संकल्पी ) मनमें संकल्प करके ( ते मांहि ) उक्त जीवोंमेंसे ( सगा सम्बन्धि शरीर माहिला पीड़ाकारी सअपराधि ते उपरान्त निरपराधि आकुट्टी हणवानी बुद्धिसे हणवाका पञ्चक्खाण) अपने स्वजन सम्बन्धि तथा शरीरमें पीडा करनेवाला और स्व अपराध करनेवाला वा अन्यायसे वर्तनेवाला जो स्व अपराधि है उनके विना जो निरपराधि जीव हैं उनको जानकर मारनेकी बुद्धिसे मारनेक। प्रत्याख्यान ( जाव जीवाय) यावत् जीव पर्यन्त ( दुविह) द्विविध वा (तिविहेणं) त्रिविधि करके जैसे कि ( न करेमि ) नहीं करू ( न कारवेमि) नहीं हिंसादि औरोसे कराऊ ( मणसा ) मन करके ( वयसा ) वचन करके (कायसा) काय करके (हवा) इस प्रकार से ( पहिला थूल प्राणातिपात विरमण व्रतना) प्रथम स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रतके ( पच अइयारा ) पाच अतिचार ( पयाला ) प्रधान [ मोटे ] ( नाणियव्वा ) जानने योग्य है ( न समायरियव्वा ) किन्तु ग्रहण करने योग्य नहीं हैं ( तंज्जहा) तद्यथा ( ते आलोउ ) तिनकी मै आलोचना करता हू ( बंधे) क्रोधादि करके कठिन बंधनोंसे बांधना (वहे) वध करना (छविच्छेए) छविका छेदन करना (अइभारे) मर्यादा रहित भारका लादना ( भात पाणी वोच्छेए) अन्न पाणीका निरोध करना (जो ) जो (मे) मैने (देवास) दिन सम्बन्धि ( अइयारो) अतिचार (कओ) किया है ( तस्स ) उसका पाप (मिच्छामि ) मिथ्या हो (दुक्कडं ) जो दुष्कृत है ॥ भावार्थ -- प्रथम अनुव्रत में यह कथन है, किं गृहस्थी स्थूल हिंसा
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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