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________________ सम्मत्त सदहणा एहवा सम्यक्त्वना समणोवासयाणं सम्मत्तस्स पंच अइयारा पयाला जाणियव्वा न समायरियव्वा तज्जहा ते आलोउं संका कंक्खा वितिगिच्छा परपासंडी परसंसा परपासंडी संग्रवो एवं पांच अतिचार मध्ये जे कोई अतिचार लागो होय तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ॥ हिदी पदार्थ-(दर्शन सम्यक्त्व) दर्शन सम्यक्त्वका स्वरूप वर्णन करते है कि (परमत्थ) परमार्थ जो नव तत्व जीवादि है उनका (संथवो) संस्तव करना परिचय करना तथा (सुदिठ परमत्थसेवणावि) परमार्थको जिन्होंने भली प्रकारसे देखा है उनकी सेवा करनी (वावण्णं) जिन्होने सम्यक्त्वको धारण करके त्याग दिया है वा वमण कर दिया है तथा जो (कुदसण) कुत्सित दर्शन है जिन्होंमें सम्यक्त्वका ही अभाव है ऐसे पुरुषोंकी सगतिको (वज्जणाय) वर्जना (एवी) इस प्रकारसे (सम्मत्त) सम्यक्त्वकी (सदहणा) श्रद्धा होती है (एहवा सम्यक्त्वना समणोवासयाण) इस प्रकारसे जो सम्यक्त्वके धारक श्रमणोपासक है उनको (सम्मत्तस्स) सम्यक्त्व सम्बन्धि (पंच) पाच (अइयारा) अतिचार (पयाला) स्थूल है जोकि (जाणियव्वा) जानने योग्य तो अवश्य है, किन्तु (न समायरियव्वा) समाचरण योग्य नहीं है (तज्जहा) तद्यथा (ते आलोउं) उनकी आलोचना करता हूं-जैसेकि (संका) जिनवचनोंमे शंका करना (कक्खा) परमतकी आकाक्षा करना (वितिगिच्छा) फल विषय संशय करना जैसेकि सुव्रतोंका फल हे किम्बा नहीं है (परपासडी परसंसा) परपाखडियोकी प्रशंसा करना क्योकि मिथ्यात्वियोंकी प्रशसा करनेसे बहुतसे आत्मा मिथ्यात्वमे ही प्रवेश कर जाते है (परपासंडी सथवो)
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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