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________________ कालमें स्वाध्याय न किया हो (असल्झाइय सज्झायं) अस्वाध्यायके समयमें स्वान्याय किया हो (सज्झाइय न सज्झायं) स्वाध्यायके समयमें स्वाध्याय न किया हो (जो) जो (मे) मेरा (देवसि) दिन सम्बन्धि (अइयारो) अतिचार (कओ) किया हुआ है (तस्स) उसका (मिच्छा मि) फल मिथ्या हो वा निष्फल हो (दुक्कड) पापका ॥ भावार्थ-आगम तीन प्रकारसे प्रतिपादन किया गया है नेप्सकि सूत्रागम १ अर्थागम २ तदुभयागम ३, सो जवाइद्धं इत्यादि १४ अनिचार ज्ञान के है सो उनको श्रावक दूर करे। उक्त पाठसे श्रावकको सूत्र पठन करने स्वतः ही सिद्ध होते हैं । दर्शनका पाठ॥ . दर्शन सम्यक्त्व परमत्थ संश्रवो वा सुविद्य प. रमत्य सेवणावावि वावण्णं कुदंसण वज्जणाय एवी 1 सम्यक्त्व प्रहण करनेके निम्न लिखिन मूत्र पढना चाहिए. अहन भते तुम्हाणं म्मीव मिच्छत्ताउ पटिनमामि, सम्मत्त उवप्त पत्र. ज मि तजहा दबउ वित्तर कालर मावउ दव्बउण मिच्छत कारणाई पञ्चक्खामि, सम्मत्त कारणाइ उप पवजामि नो मे कप्पड अझप्याभई अन्नर. थिए वा अनउत्विय देवयाणि वा अनउत्यिय परिग्राहियाणि, चेइयाणि पहित्तए वा नमसित्तए वा पुछि अणालित्तणं आलवित्ता वा सलवित्तए वा तेसि अमगंधा, पाण था, खाइम था, सादम या, दाउ वा, अणुप्पयाउ वा खित्तउण दत्य का अनय या, काल उणं जायजीवाए भाषण जावगहेण न हिजामि जा. बच्उलग न छलिनामि, जाव सनिवारण नाभिभविजामि जाव अनेण वा केणयगेयाय कारणाए सपरिणामो न परिवहड तामेव असम्पदसणं नमथगयाभिटगेणं, गणाभिनगेण, पलाभिटगेणं, देवाभिगेण, गुरू निग्गहेणं वित्तीकनोगं धोसिमि ॥ अग्हतो महदेवो जापनीयाय मुमा सो गुरुणो जिण पउत्तं तन ईयसम्मत मए गहिय ।
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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