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________________ ५० हिंदी पदार्थ-(चत्तारि मंगलं) चार मंगल है-जैसेकि-(अरिहता मगलं) त्रैलोक्य पूज्य श्री अर्हन्त मंगलीक है, द्वितीय-(सिद्धा मंगलं) सिद्ध प्रभु मगलीक है, तृतीय-( साहू मगलं) साधु मगलीक है, चतुर्य(केवलि पण्णत्तो धम्मो मगलं) श्री केवली भगवानका प्रतिपादन किया हुआ श्रुत चारित्र रूप धर्म मंगलीक है, (चत्तारि लोगुत्तमा) चार ही पदार्थ लोकमें उत्तम है (अरिहंता लोगुत्तमा) अरिहत प्रभु लोकमें उत्तम है, (सिद्धा लोगुत्तमा) सिद्ध भगवान् लोकमें उत्तम हैं, (साहु लोगुत्तमा ) अहनाज्ञानुकूल क्रिया करनेवाले साधु लोकमें उत्तम है, (केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा) श्री केवलि भगवानका प्रतिपादन किया हुआ धर्म लोकमें उत्तम है। पुनः (चत्तारि सरणं पव्वजामि ) मैचार शरण अंगीकार करता हू (अरिहंता सरण पव्वजामि) श्री अर्हन् भगवान्का शरण ग्रहण करता हू (सिद्धा सरणं पव्वजामि ) श्री सिद्ध महाराजाओंका शरण ग्रहण करता हूं (साहू सरणं पव्वजामि) श्री साधु मुनिराजोंका शरण ग्रहण हू (केवलि पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वजामि) श्री केवलि भगवान्के प्रतिपादित धर्मका शरण ग्रहण करता हूं। भावार्थ-लोकमें चार ही मंगल है, चार ही उत्तम है, चार ही शरण है जैसेकि अर्हन् १ सिद्ध २ साधु ३ केवलि भापित धर्म ४ ॥ फिर "इच्छामि ठामि" इस सूत्रको पढके इच्छाकारेण यह सूत्र पाठ पड़े, फिर तिक्खुत्तोके पाठके साथ वंदना नमस्कार करके व्रत अतिचारके पठन करनेकी आज्ञा लेकर प्रथम ज्ञानातिचारोंकी आलोचना करे, जैसेकि-- "आगमे तिविहे पण्णते"का पाठ॥ आगमे तिविहे पण्णते तंज्जहा सुत्तागमे अ. दया धर्मको साणो || चार सरणा दुःख हरणा और न बीजो कोय, जो भनि प्राणी भादरो तो अक्षय अचल गति होय॥
SR No.010524
Book TitleAgam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherLala Munshiram Jiledar
Publication Year1915
Total Pages101
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size4 MB
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